अवध, पूर्वांचल व बिहार के क्षत्रियों की गौरवगाथा (Rajputs from east India)
पुरबिया राजपूतों की शौर्यगाथा------ Rajputs of east India , one of the greatest martial races of the world---- 10 अप्रैल 1796 ईस्वी को हरिद्वार के कुम्भ मेले का अंतिम दिन था,लेकिन सुबह की पहली किरण भावी विनाश का संकेत लेकर आई थी, कुम्भ स्नान के दौरान ही नागा साधुओं का वहां स्नान के लिए आए पटियाला के सिक्ख सैनिको से विवाद हो गया। इसके बाद पटियाला के साहिब सिंह ने 14 हजार जट्ट सिक्ख घुड़सवार सैनिको के साथ हरिद्वार में तीर्थयात्रियों का संहार और लूटपाट शुरू कर दिया। 500 के लगभग निर्दोष तीर्थयात्री साधू संत और व्यापारी मारे गए,और हजारो को तलवार के वॉर से घायल कर दिया गया,हर की पैड़ी रक्त से लाल हो गयी।।सैंकड़ो साधु गंगा पार कर जान बचाते हुए डूब कर मर गए, कुछ तेज धार में बह गए।। इस नरसंहार में हजारो तीर्थयात्री और मारे जाते मगर सौभाग्य से वहां कैप्टन मुरे के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना की एक पुरबिया राजपूत बटालियन मौजूद थी,जिसके करीब एक हजार राजपूत सैनिक अवध पूर्वांचल और भोजपुर क्षेत्र से थे, उन्होंने अपनी जान पर खेलते हुए संख्याबल में कहीं ज्यादा साहिब सिंह पटियाला के जट्ट सिक्ख सैनिको को चुनौती