जाडेजा राजपूतों द्वारा लड़ा गया मिठोई का प्रसिद्ध युद्ध(JADEJA RAJPUTS AND THE GREAT BATTLE OF MITHOI )






                       JADEJA RAJPUTS AND THE GREAT BATTLE OF MITHOI










जय श्री कृष्ण----------------
मित्रों पिछली पोस्ट में हमने चन्द्रवंश की यदुबंशी शाखा "जाडेजा राजपूतों"
की उत्पत्ति और उनके द्वारा स्थापित राज्यों का विवरण दिया था,अब हम आपको जडेजा राजपूतों की वीरता के परिचायक महान युद्धों की जानकारी देंगे,इसी क्रम में आज आपको मिठोई के प्रसिद्ध युद्ध की जानकारी देंगे जिसमे जडेजा राजपूतों ने अपने से कई गुना बड़ी शत्रुओं की सयुंक्त सेना को शिकस्त दी थी......
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जाम रावल जी और मिठोई का युद्ध =============



चंद्रवंशी जाडेजा राजवंश में जाम रावल नाम के महान अजेय शासक हुए,जिन्होंने अपने जीवन काल में कभी एक युद्ध भी नही हारा और पूरे सौराष्ट्र के राजाओ को हरा कर नवानगर राज्य स्थापित किया।नवानगर


राज्य की राजधानी जिससे आज जामनगर कहा जाता है, जाम रावल ने इस शहर की स्थापना विक्रमी सम्वत 1596 में श्रावण मॉस के 7 वे दिन की।



विक्रमी संवत 1606 में जाम रावल ने अपने जीवन काल का सबसे बड़ा युद्ध लड़ा जिससे मिठोई का महान युद्ध भी कहा जाता है। इस युद्ध में जाम रावल के विरुद्ध समस्त सौराष्ट्र एवं गुजरात की सेनाए लड़ी थी। जिसमे


वाला जेठवा वढेर चौहान परमार झाला वाघेला गोहिल काठी जूनागढ़ के मुस्लिम सुल्तान अपने अपने सैन्य के साथ जुड़े और मिठोई तक आकर पड़ाव डाला. अहमदाबाद के सुल्तान के द्वारा मदद के लिए140 तोप भेजने के बावजूद भी जाम रावल की सेना ने अपने तलवारों की मदद से इस युद्ध में बहादुरी से जीत हासिल की।यह युद्ध योद्धाओं के शौर्ये और बन्दूको पर तलवारो के भारी हुनर की जीत के लिए भी जाना जाता है एवं क्षत्रियों के गौरव और बहादुरी का प्रतीक है



इधर जाम रावल ने भी रिश्तेदारों भायतो को बुलाकर युद्ध की तैयारी करवाई. ध्रोल से उनके लघुबंधु ठाकोर श्री हर्ध्रोल जी भी अपनी सेना के साथ आ गये और योद्धा भी जुड़े रथ को तैयार कर माँ आशापुरा का और पितामह कृष्ण का स्मरण कर सबने सत्रु के सामने कूच 
किया,दुश्मन की तोपों और भारी फ़ौज का मुकाबला करने के लिए जाम रावल ने युद्ध से पहले सलाहकारों के साथ विचार विमर्श किया।अपने सारे सामंतों को बुलाकर सलाह मशवरा किया ,वजीर नोंघंन ने सलाह दी के 3 हिस्सों में फौज को बाटकर एक को बीच मे और दो को दाये और बाये की और रखते हे जैसे ही शत्रु तोप चलाये बिचवाली टुकड़ी लेट जाये और तोप चल जाने के बाद पीछे हटना पीछे है जानकार वो दुबारा तोप नहीं भरेंगे और हम फायदा उठाकर हमला कर देंगे ' जाम श्री रावल जी सुनकर कहते हे की --





हु रावल जो हटु,सती तजदे पियसाधी||
होवते कलह रावल हटु,माने किम् संसार मन||
अब जीवन मरण प्रम उपरा, देवा क्रम अश्वमेघ दन||१||


अर्थात अगर मेरु पर्वत चड़ै और पृथ्वी पर सूर्य प्रकाश न दे,योगेश्वर जो योगभ्रष्ट होकर समाधी तोड़े,माँ पार्वती शंकर का साथ छोड़े तो में रावल जाम युद्ध में पीछे हटूं और फिर मै संसार में कैसे जियूं? जीवन और मृत्यु

ईश्वर के अधीन है, हम सामने जाकर अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त करेंगे.......




बहुत सोचने के बादयह परामर्श निकला गया के युद्ध तभी जीता जा सकता है जब दुश्मन की तोपों को निष्क्रिय किया जा सके। तोपों को निष्क्रिय करने के लिए तोपों में एक निश्चित जगह खूंट घुसाने के विधि सुझाई गयी जिससे तोपें चल ही ना पाए। इस कार्य को करने के लिए एक विशाल राजपूतों की सभा बुलाई गयी, इस प्रकार की सभा को उन दिनों बीड़ू कहा जाता था। बीड़ू का एक नियम था यदि सभा में मौजूद कोई क्षत्रिये बीड़ू में राखी गयी चुनौती को नहीं कबूलता तो उस दिन की सभा में एक ब्राह्मण की बलि दी जाएगी जिसकी ब्रह्मा हत्या का पाप सभा में मजूद सभी क्षत्रियो को लगेगा। 





बलि से पहले बीड़ू के फरमान को ४ बार पढ़ा गया। पहले तीन बार में किसी ने तोपों में खूंट गाड़ने की चुनौती नहीं कबूली पर चौथी बारी में तोगा जी सोढा नाम के बहादुर राजपूत ने अन्य तीन जडेजा राजपूतो के साथ चुनौती को स्वीकारा।




तोप नष्ट करने की जिम्मेवारी लिए तोगा और 3 वीर जडेजा कुमार के साथ अनजान मुसाफिर खानपान की तलास में आये ऐसा जताकर दुश्मन के खेमे में घुस गए और एक एक कर तमाम तोपचियों को मार कर सभी एक १४० तोपों को निष्क्रिय कर आए।तोगा जी सोढा अपने समय के एक महान योद्धा थे और ऐसे कई योद्धा जाम रावल के सैन्यरत्न थे।




जब दुश्मन को पता चला के केवल ४ योद्धा आ सभी तोपों व असलाह को निष्क्रिय कर गए तो संयुक्त सेना के खेमे में हड़कम्प मच गया।केवल चार योद्धाओ की इतनी बड़ी बहादुरी देख दुशमन सेना में बेचैनी व हार के अंदेशे

का डर भर गया जब उन्होंने ने सोचा के ऐसे 150000 सैनिक अभी और है जिनका उन्हें सामना करना पड़ेगा। परिणाम स्वरुप दुश्मन ने भी बीड़ू का आयोजन किया और उसमे जाम रावल के कटे सर को लाने की चुनौती सभी क्षत्रियों के सामने रखी गयी। इस कार्य की जिम्मेवारी करसनजी झाला नामक क्षत्रिये ने ली।




करसन जी झाला भी सफ़ेद ध्वज उठाये दुश्मन के खेमे की और बढ़ चला। सफ़ेद ध्वज का अर्थ आत्मसमर्पण से होता है इसलिए करसन जी को सेना के भीतरी खेमों में आने की इजाजत मिली।करसन जी ने सेना के सामने

आत्मसमर्पण की शर्त राखी के वे केवल जाम रावल जी के सामने झुकेंगे और सन्देश पढ़ेंगे। उस सेना में मजूद हरदौल जी जो की जाम रावल के छोटे भाई थे और नवानगर के सेनापति भी थे करसन की मंशाओं को भाप गए और खुद करसन के आगे जाम रावल के रूप में खड़े हो गए। करसन ने हरदौल जी को जाम रावल समझ तुरंत उनकी गर्दन पर खंजर से हमला कर दिया जिसमे वे घायल हो गए और अंत में वीरगति को प्राप्त हुए।इस घटना के बारे में सुन जाम नरेश जी इतने क्रोधित हो उठे के उन्होंने तुरंत कारसन का सर धड़ से अलग करने के निर्देश दिए। परन्तु कारसेन जी मोके का फायदा उठा कर अपने घोड़े पर बहुत तेजी से जडेजाओ के खेमे से दूर भाग चले। 





रास्ते में एक सोलह साल का लड़का जिसका नाम मेरमणजी हाला ( जाडेजाओ की शाख ) था, अपनी पट्टी नामक घोड़ी को सिंहं नदी के किनारे नहला रहा था। उसने अचानक एक आदमी को घोड़े पर अपनी और भागते देखा जिसके पीछे काफी सैनिक लगे हुए थे। मेरमण तुरंत परिस्तिथि को समझ गया और कारसेन के पीछे लग गया। दुश्मन के खेमे और कारसेन की स्तिथ में अभी भी काफी अंतर था। मेरमण जी ने कारसेन जी का बड़ी बहादुरी से पीछा किया के तभी एक 50 फुट चोर नाला दोनों के बीच आ गया। मेरमण जी ने नाले की चौड़ाई को देखते हुए अपनी घोड़ी पट्टी से कहा आज जडेजा वंश की हाला शाख की इज्जत तुम्हारे हाथों में है। पट्टी पचास फुट चौड़े नाले को बड़ी बहादुरी से दो बार में टॉप गयी और दूसरी और जा खड़ी हुई। मेरमण जी ने तुरंत अपने शरीर को संभाला और पट्टी पर खड़े होकर कारसेन की और पूरी ताकत से भाला फेंका।भाला सीधा कारसेन के दिल को भेद गया और वे वहीँ धराशाई हो गए।मेरमण जी की इस बहादुरी को वह आ कर जाम रावल और हजारो जडेजा सैनिको ने देखा।जाम रावल जी कवि नही थे पर उन्होंने मेरमण की इस बहादुरी को देख कर अपने घोड़े से उतर कर देखा तो मेरमण जी की आँख जोर लगाने की वजह से बहार दिख रही थी और घोड़े के भी मुठ बेठ गए थे ये देख उनके मुह से उसके लिए कुछ अनमोल पंक्तियाँ निकली----


”हाला जी तेरा हाथ बखानू के पट्टी तेरा पागला बखानू ”




जिसका अर्थ है हाला जी मैं किसकी तारीफ करू इस बहादुरी के आपके हाथों की या पट्टी घोड़ी के टांगों की मैं खुद


 ही इतना चकित हूँ।ये पंक्तियाँ आज भी अनेको गुजराती देश भक्ति के गानो में इस्तेमाल की जाती है और 



लाखों लोगों के लिए प्रेरणा की स्त्रोत बनीं। 













वर्षाऋतु में चले इस युद्ध में पानी के साथ लहू भी इतना बहता चला गया अनेक योद्धा अपना कौशल दिखाने 





लगे,शत्रु का 12 हजार सैनिक मारे गए और इधर जाम जी के 4 हजार योद्धा काम आये, इसके बाद जाम रावल की सेना ने युद्ध में भी इसी प्रकार कर कौशल दिखाया और संख्या में बेहद कम होने के बावजूद भी दुश्मन की संयुक्त सेना पर जीत हासिल की।


लड़ाई के बाद सभी शत्रु राजा भाग गये जाम का सैन्य उनका पीछा करने लगा,भागते शत्रु का पीछा करना क्षत्रिय 





धर्म नही है कहकर जाम ने सेना वापिस बुलाई और जेठवा को हालार में से ,काठीओ को भादर नदी के उस पार, 


देदा और झाला को मछु नदी के उस पार खदेड़ा जो आजादी तक चला अपने भाई को खोने के गम में जाम रावलने नया मुल्क जमीन न जीतने की प्रतिज्ञा ली और सभी भायतो को 12-12गाव दिये ,आहीर को मायत्रु गाऊँ दिया और मत्वा लोगो को मत्वा गाव दिया अपने चारण को 2 गाव देकर राज्य स्थिर किया ये युद्ध इतिहास के पन्नो में अमर हो गया पर कई लोक कथाओ में आज भी जीवित है।===========================================




======= Battle of Mithoi ========================





Jam Rawal captured Majority of area Of Saurashtra by defeating all kings

af that area and the great kingdomNawanagarwas established, the

capital city was called Jamnagar, which is still a promonent city of

Saurashtra. Jamnagar was founded by Jam Rawal on 7th day of shrawan

mounth of first quarter of v.s. 1596. The Jam Rawalwas never defeated

in his life in any battle. In v.s.1606, Jam Rawal defeatedcombined forces

of all kings of Saurashtra and Gujrat, even Sultan of Ahmedabad

supported opposition by giving 140 guns, which Jam Rawal did not

possess. Even ThenJam Rawal defeated all in great battle of “Mithoi”, the

site near present day refinery of reliance. In thatBattle the younger brother

of Jam Rawal: Hardholji became Martyr. It was the great battle; “MITHOI

BATTLE”. The combined forcesof all kings of saurashtra and Gujrat with

support of sultan of Ahmedabad, was about 2,50,000 in numbers and

army of Jam Rawal was about 1,50,000. Combined forces had 140 big

guns (Cannons), none in possession of Jam Rawal's army. There was a

meeting of ‘think tank’ of Jam Rawal’s army before battle started, in

which it was decided that we can only win the battle if we can neutralise

the power ofcannons if a particular screw is fitted at specific site of the

cannon, a cannon cannot fire. So a huge meeting of all armymen of Jam

Rawal's army was called, in which a ‘Beedu’ was circulated in which it

was declared "Is there any brave Rajput who can fit a screw in all the 140

big guns of combined enemy forces, That brave Rajput will be

awardedwith 12 villages", according to the principles of ‘beedu’, if

nobody accepts that challenge, then a holi brahmin-man is killed in front

of whole meeting and the ‘great sin’ of brahma-hatya applies to all the

people present in the meeting. The beedu is circulated maximally four

times, even then if no body accepts the challenge, a holy brahmin man is

killed. Nobodytook challenge till three rounds, but on the fourth

circulation, one great brave man TOGAJI SODHA took up the challeng

along with three JADEJA rajputs, and went to opposition camps in name

of strangers, eager to know about the big-guns. With great bravery,

chivalry and skills TOGAJI SODHA and his other three collegues,

rendered all the 140 big guns of enemies totally useless. In later part,

when enemies realised, there was fierce fight between soldiers of

enemies and these brave 4 persons of Army of Jam Rawal. There were

84 wounds in body of TOGAJI SODHA ,when he came back after

successfully completing the task of desarming all the 140 big guns.

TOGAJI SODHA was one of the greatest war hero of that centuryin the

world at that time, Jam Rawals army had quite few of them. There was a

great panic in the camp of combined forces once they realised that only 4

soldiers of Jam Rawal's army destroyed all of our guns, then what will

happen if all 1,50,000 soldiers come to fight us. Asa last resort, a huge

meeting ofall 2,50,000 soldiers of combined forceswas called and acting

in same way as Jam Rawal’s strategy, they also circulated a ‘beedu’, that

'Is there any brave person in our clan who canbring the severed head of

Jam Rawal?' A soldier named Karsanji took up the challenge. Karsanji

went by putting a white flag on his ‘bhalo’ (spear). A white cloth

suggests that ‘we want to surrender!’, so he was allowed to go to

deepest part of army camp of Jam Rawal. Karsanji insisted that he will

personally hand over the message to Jam Rawal only, not to anyone else.

HARDHOLJI, younger brother of Jam Rawal, and also commander of Jam

Rawal’s army, told Karsanji that he was Jam Rawal, give me ur message.

Karsanji thoght he was Jam Rawal, and immediately took his spear and

stuck a blow on Hardholji and he was severely hurt and later died and

became martyr. Jam Rawal was very furious and ordered to kill Karsanji,

but by that time Karsanji ran very very fast on his horse and went out of

army camp. There was a young boy of 16 years name Meramanji Hala (a

sub-branch of jadejarajputs) was busy bathing his horse in river

‘SINHAN’, name of his horse was “Patti”, a female horse. He heard the

noise and saw a person running away and hundreds of people shouting

and running after him. He soon realised and immediately took his horse

and ran after enemy soldier Karsanji. There was a great race and still

some good distance was there between him and enemy. In between

came river-pit some 50 feet wide, MERAMANJI asked his horse ‘patti’,

that ‘this is the time of test of bravery for Hala clan of Jadeja,and it is in

ur hand’. Patti jumped 50 feet river-pit and Meramanji Hala jadeja stood

up on horse and threw his spear on Karsanji. The spear of Karsanji

pierced through Karsanji's heart, his horse and wentdeep into the soil.

This was the force of one of the greatest warroirs of the century

Meramanji Hala Jadeja. Then thousands of soldiers and Jam Rawal

came and saw the bravery, chivalry of Meramanji. Jam Rawal was never

a poet, but after seeing this great bravery, there were spontaneous words

from mouth of Jam Rawal ”HALAJI TARA HATH VAKHANU KE PATTI

TARA PAGALA VAKHANU” (What to praise? Whether I should praise the

hands of Meramanji Halaji or the legs of Patti horse! I am confused), and

these words became the words of great bravery song of Gujrati

Language, inspiring lacs and crores of people since centuries to fight for

the Nation.









सन्दर्भ--


1-यदुवंश प्रकाश


2-सौराष्ट्र का इतिहास 


3-http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/08/jadeja-rajputs-and-great-battle-of.html





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