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Showing posts from February, 2014

RAJPUT WOMEN.. रानी पद्मिनी

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RAJPUT WOMEN   रानी पद्मिनी                                                 रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रत्नसिंह चितौड़ की राजगद्दी पर बैठा | रत्नसिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी | उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर दूर तक फैली थी | उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चितौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी | उसने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिको के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया | तब उसने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चितौड़ रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि "हम तो आपसे मित्रता करना चाहते है रानी की सुन्दरता के बारे बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुंह दिखा दीजिये हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे | सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने प

|<| परमार |>|

|<| परमार |>| ¤वंश - अग्निवंश ¤वेद - यजुर्वेद ¤गौत्र - वशिष्ठ ¤नदी - क्षिप्रा ¤इष्टदेव - महाकाल या कालभैरव ¤कुलदेवी - श्री संचावलीजी या गजानन माता धार ¤शाखा - वाजसनेयी या माध्यन्दिनी ¤सूत्र - पारस्कार ग्रह्म सूत्र ¤प्रवर - वशिष्ठ या अत्रि ¤व्रक्ष - कदम्ब या पीपल ¤शाखाएँ - पैँतीस ¤प्रमुख गददी - धारानगरी या उज्जैन ¤उपवेद - धनुर्वेद ¤कुलगुरू - वशिष्ठ या पाराशार ¤ध्वज - पीत या पीला ¤नोबत - बजरंग ¤नगारा - विजय बम्ब ¤पक्षी - मयूर ¤धूणी - हराड़ी ¤भैरव - कालभेरू ¤गढ़ - आबू ¤ढोल - बाजुवार ¤नगारची - डीरा ¤तलवार - तेंग ¤उपाधि - सवाई ¤घोड़ा - कुमेत ¤प्रणाम - जय शंकर या जय महाकालेश्वर ¤तिलक - शिव तिलक ¤बंधेज - जीमणा ¤कुंड - अग्नि कुंड ¤निशान - पीला |<|परमारोँ की वंशावळी|>| ¤-परमार या पंवार ¤-पहुंकर ¤-परुराव या परुख ¤-कलंक कुँवर ¤-सेन ¤-परासेन ¤-भरत ¤-भांण ¤-चन्द्र ¤-किलंग इन्द्र ¤-हंस ¤-श्री हंस ¤-चतरंगदे ¤-गंध्रपसेन ¤-वीर विक्रमदे या राजा विक्रमादित्य ¤-विक्रमसत या वीकमचित्र ¤-भीमसुख ¤-बलूदेव ¤-पत ¤-भूपत ¤-राजा जयधमल ¤-वीसल ¤-श्यामभाण ¤-शकत कुँवर ¤-वीरुचंद ¤-महेपाल डंड ¤-प्रथ्वी डंड ¤

राजपूत शासन काल:

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राजपूत शासन काल:                        महाराणा प्रताप महान राजपुत राजा हुए।इन्होने अकबर से लडाई लडी थी।महाराना प्रताप जी का जन्म मेवार मे हुआ था |वे बहुत बहदुर राजपूत राजा थे।महाराना प्रताप जी का जन्म मेवार मे हुआ था |वे बहुत बहदुर राजपूत राजा थे|   राजपूत शासन काल   शूरबाहूषु लोकोऽयं लम्बते पुत्रवत् सदा । तस्मात् सर्वास्ववस्थासु शूरः सम्मानमर्हित।। राजपुत्रौ कुशलिनौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ । सर्वशाखामर्गेन्द्रेण सुग्रीवेणािभपालितौ ।। स राजपुत्रो वव्र्धे आशु शुक्ल इवोडुपः । आपूर्यमाणः पित्र्िभः काष्ठािभिरव सोऽन्वहम्।। सिंह-सवन सत्पुरुष-वचन कदलन फलत इक बार। तिरया-तेल हम्मीर-हठ चढे न दूजी बार॥ क्षित्रय तनु धिर समर सकाना । कुल कलंक तेहि पामर जाना ।। बरसै बदिरया सावन की, सावन की मन भावन की। सावन मे उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हिर आवन की।। उमड घुमड चहुं दिससे आयो, दामण दमके झर लावन की। नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन की।। मीराँ के पृभु गिरधर नागर, आनंद मंगल गावन की।। हेरी म्हा दरद दिवाणाँ, म्हारा दरद न जाण्याँ कोय । घायल री गत घायल जाण्याँ, िहबडो अगण सन्जोय ।। जौहर की गत जौह

राजपूत जातियो की सूची : क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला

राजपूत जातियो की सूची :     क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला       १. सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ   २. गहलोत बैजवापेण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले   ३. सिसोदिया बैजवापेड सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट   ४. कछवाहा मानव सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य   ५. राठोड कश्यप सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा   ६. सोमवंशी अत्रय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई   ७. यदुवंशी अत्रय चन्द राजकरौली राजपूताने में   ८. भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना   ९. जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज   १०. जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा   ११. तोमर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर   १२. कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई   १३. पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर   १४. परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिये   १५. तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में   १६. पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया   १७. सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा   १८. चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र   १९. हाडा

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-   १.सेंगर २.दीक्षित ३.दायमा ४.गौतम ५.अनवार (राजा जनक के वंशज) ६.विसेन ७.करछुल ८.हय ९.अबकू तबकू  १०.कठोक्स  ११.द्लेला  १२.बुन्देला चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-   १.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर

अग्निवंश की चार शाखायें:-

अग्निवंश की चार शाखायें:-   १.चौहान २.सोलंकी ३.परिहार  ४.पमार.

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-   १.जादौन २.भाटी ३.तोमर ४.चन्देल ५.छोंकर ६.होंड ७.पुण्डीर ८.कटैरिया ९.·´दहिया  १०.वैस

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

सूर्य वंश की दस शाखायें:-   १. कछवाह २. राठौड  ३. बडगूजर ४. सिकरवार ५. सिसोदिया  ६.गहलोत  ७.गौर  ८.गहलबार  ९.रेकबार  १०.जुनने

राजपूतोँ के वँश

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राजपूतोँ के वँश          "दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण, भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान, चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमा."       अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

भारत देश का नामकरण

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भारत देश का नामकरण                     राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है। भगवान श्री राम ने भी क्षत्रिय कुल मेँ ही जन्म लिया था।हम अपने देश को "भारत" इसलिए कहते हैँ क्योँकि हस्तिनपुर नरेश दुश्यन्त के पुत्र "भरत" यहाँ के राजा हुआ करते थे।राजपूतोँ के असीम कुर्बानियोँ तथा योगदान की बदौलत ही हिँदू धर्म और भारत देश दुनिया के नक्शे पर अहम स्थान रखता है। भारत का नाम्,भगवान रिशबदेव के पुत्र भरत च्करवति के नाम पर भारत हुआ(शरइ मद भागवत्) | राजपूतों के महान राजाओ में सर्वप्रथम भगबान श्री राम का नाम आता है | महाभारत में भी कौरव, पांडव तथा मगध नरेश जरासंध एवं अन्य राजा क्षत्रिय कुल के थे | पृथ्वी राज चौहान राजपूतों के महान राजा थे |                     राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि जो केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा

हमारे देश का इतिहास आदिकाल से गौरवमय रहा है,क्षत्रिओं की आन बान शान की रक्षा केवल वीर पुरुषों ने ही नही की बल्कि हमारे देश की वीरांगनायें भी किसी से पीछे नही रहीं।

  हमारे देश का इतिहास आदिकाल से गौरवमय रहा है,क्षत्रिओं की आन बान शान की रक्षा केवल वीर पुरुषों ने ही नही की बल्कि हमारे देश की वीरांगनायें भी किसी से पीछे नही रहीं। आज से लगभग एक हजार साल पुरानी बात है,गुजरात में जयसिंह सिद्धराज नामक राजा राज्य करता था,जो सोलंकी राजा था,उसकी राजधानी पाटन थी,सोलंकी राजाओं ने लगभग तीन सौ साल गुजरात में शासन किया,सोलंकियों का यह युग गुजरात राज्य का स्वर्णयुग कहलाया। दुख की यह बात है,कि सिद्धराज अपुत्र था,वह अपने चचेरे भाई के नाती को बहुत प्यार करता था। लेकिन एक जैन मुनि हेमचन्द ने यह भविष्यवाणी की थी,कि राजा सिद्धराज जयसिंह के बाद यह नाती कुमारपाल इस राज्य का शासक बनेगा। जब यहबात राजा सिद्धराज जयसिंह को पता लगी तो वह कुमारपाल से घृणा करने लगा। और उसे मरवाने की विभिन्न युक्तियां प्रयोग मे लाने लगा। परन्तु क्मारपाल सोलंकी बनावटी भेष में अपनी जीवन रक्षा के लिये घूमता रहा। और अन्त में जैन मुनि की बात सत्य हुयी। कुमारपाल सोलंकी पचपन वर्ष की अवस्था में पाटन की गद्दी पर आसीन हुआ। राजा कुमारपाल बहुत शक्तिशाली निकला,उसने अच्छे अच्छे राजाओं को धूल चटा

राजपूतों का योगदान

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राजपूतों का योगदान   क्षत्रियों की छतर छायाँ में ,क्षत्राणियों का भी नाम है | और क्षत्रियों की छायाँ में ही ,पुरा हिंदुस्तान है | क्षत्रिय ही सत्यवादी हे,और क्षत्रिय ही राम है | दुनिया के लिए क्षत्रिय ही,हिंदुस्तान में घनश्याम है | हर प्राणी के लिए रहा,शिवा का कैसा बलिदान है | सुना नही क्या,हिंदुस्तान जानता,और सभी नौजवान है | रजशिव ने राजपूतों पर किया अहसान है | मांस पक्षी के लिए दिया ,क्षत्रियों ने भी दान है | राणा ने जान देदी परहित,हर राजपूतों की शान है | प्रथ्वी की जान लेली धोखे से,यह क्षत्रियों का अपमान है | अंग्रेजों ने हमारे साथ,किया कितना घ्रणित कम है | लक्ष्मी सी माता को लेली,और लेली हमारी जान है | हिन्दुओं की लाज रखाने,हमने देदी अपनी जान है | धन्य-धन्य सबने कही पर,आज कहीं न हमारा नाम है | भडुओं की फिल्मों में देखो,राजपूतों का नाम कितना बदनाम है | माँ है उनकी वैश्याऔर वो करते हीरो का कम है | हिंदुस्तान की फिल्मों में,क्यो राजपूत ही बदनाम है | ब्रह्मण वैश्य शुद्र तीनो ने,किया कही उपकार का काम है | यदि किया कभी कुछ है तो,उसमे राजपूतों का पुरा योगदान है | अमरसिंघ राठौर,महाराणा प्र

इन राजपूत वंशों की उत्पत्ति के विषय में विद्धानों के दो मत प्रचलित हैं- एक का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी है, जबकि दूसरे का मानना है कि, राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय है।

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 इन राजपूत वंशों की उत्पत्ति के विषय में विद्धानों के दो मत प्रचलित हैं- एक का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी है, जबकि दूसरे का मानना है कि, राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय है। 12वीं शताब्दी के बाद् के उत्तर भारत के इतिहास को टोड ने 'राजपूत काल' भी कहा है। कुछ इतिहासकारों ने प्राचीन काल एवं मध्य काल को 'संधि काल' भी कहा है। इस काल के महत्वपूर्ण राजपूत वंशों में राष्ट्रकूट वंश, दहिया वन्श, चालुक्य वंश, चौहान वंश, चंदेल वंश, परमार वंश एवं गहड़वाल वंश आदि आते हैं।                          विदेशी उत्पत्ति के समर्थकों में महत्वपूर्ण स्थान 'कर्नल जेम्स टॉड' का है। वे राजपूतों को विदेशी सीथियन जाति की सन्तान मानते हैं। तर्क के समर्थन में टॉड ने दोनों जातियों (राजपूत एवं सीथियन) की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की समानता की बात कही है। उनके अनुसार दोनों में रहन-सहन, वेश-भूषा की समानता, मांसाहार का प्रचलन, रथ के द्वारा युद्ध को संचालित करना, याज्ञिक अनुष्ठानों का प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का प्रचलन आदि से यह प्रतीत होता है कि राजपूत सीथियन के ही वंशज थ

क्षत्रिय (The Rulers) ~ क्षत्रिय THE RULERS का मुख्य उदेश्य आज के क्षत्रियो में खो रही क्षत्रियता की भावना को जगाना है . हमें एक होकर इस देश से अपने खोये हुए उष हक़ को पाना है जिसके लिए हमारे पूर्वजो ने सैकड़ो सालो तक कुर्बानिय दी . हमें हमारा खोया हुआ मान सम्मान फिर से वापस लेना है हमें फिर से अपने हिंदुस्तान पे राज करना है जहा हमें हमारी जात के आधार प वरीयता मिले न की हमें केवल इसलिए बाहर कर दिया जाए कोइन की हम क्षत्रिय है….. इस जंग में साथ दे …. जय राजपुताना जय हिंदुस्तान

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