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Showing posts from July, 2016

बाबा मतीजी मिन्हास,जो सर कटने पर भी गौरक्षा/ब्राह्मण कन्या की रक्षा के लिए विधर्मियों से लड़ते हुए शहीद हो गए,Baba mati ji minhas

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RAJPUT LEGEND OF PUNJAB- "BABA MATI JI MINHAS" बाबा मतीजी मिन्हास ऐसी मिसाल पुरी दुनिया में मिलनी मुश्किल है,जब असहाय की पुकार सुनकर ओर धर्म युद्ध के लिए अपनी शादी अधूरी छोड़कर अपने जीवन की आहुती भेंट कर दी हो,  ऐसी मिसाल एक राजपूत ही पेश कर सकता है ! धन्‍य हों मतीजी मनहास जिनका सर काटने के बाद भी धड़ दुश्मनों के सर काटता रहा। There are many sagas in rajput history singing glories of the brave men who kept fighting even after they were beheaded.  One of such sagas is of the Veer Baba Matiji Minhas. बाबा मतीजी मिन्हास और उनके परिवार का इतिहास ---------- बीरम देव मिन्हास जी ने बाबर की इब्राहिम लोधी (जो की दिल्ली के तखत पर बैठा था ) के खिलाफ युद्ध में सहायता की थी ! इनका एक पुत्र श्री कैलाश देव पंजाब के गुरदासपुर के इलाके में बस गया ! कैलाश देव मिन्हास जी के दो पुत्र कतिजी और मतीजी जसवान ( दोआबा का इलाका जहां जस्वाल राजपूत राज करते थे) में  विस्थापित हो गए ! यहाँ पर दोनों भाई जस्वाल राजा की सरकार में ऊँचे ओधे पर काम करने लगगए ! जसवां के जसवाल राजपूत राजा ने इनकी बहादुरी और कामकाज

बिहार के शूरवीर क्षत्रिय राजपूत वंश (rajputs of bihar)

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बिहार के क्षत्रिय राजपूत वंशो का विवरण--Rajputs of Bihar बिहार -सदैव ही महानतम क्षत्रियों की भूमि रही है -जिस धरती पर त्रेतायुग ,द्वापरयग से लेकर कलयुग के 19 वी सदी तक कई महानतम क्षत्रिय वन्श व क्षत्रिय वीरों की राजधानी भी रही। ये भूमि आज देश में मौजूद कई  क्षत्रियों (राजपूतों) के उत्तपति का गवाह भी रही है""। आज जानते हैं बिहार के हर कोने कोने में फैलें कुछ प्रसिद्ध राजपूत शाखाएँ } नीचे दिए सभी राजपूत वन्श बिहार के ज्यादातर जिलों में हैं यदि कोई शाखा विशेषतः यदि किसी जगह पर अधिक होगे तो उन स्थानों का नाम लिखा होगा। नोट: जहाँ "शाहबाद" लिखु वहाँ भोजपुर,बक्सर,डुमराव,रोहतास,कैमुर जिला एक साथ होगे। जहाँ "मगध" लिखु वहाँ औरन्गाबाद,गया,नवदा,अरवल,जहानाबाद जिला एक साथ होगा। 1.परमार  उज्जैन (परमार)  गढवरिया(परमार) ये महानतम राजपूत वन्श बिहार के हर कोने मे अधिक संख्या में हैं ,इन तीन नामों से जाने जाते हैं। ________________________________  2.सिकरवार (शाहबाद, मगध,सारण में अधिक) 3.राठौर( मारवाड़ भी कहे जाते हैं) (शाहबाद व शिवहर,मुज्जफरपर में अधिक) 4.बिसेन 5.गाई (बिसेन

शहीद उदासिंह राठौड़ जी,एक वीर सिख राजपूत यौद्धा

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सिक्ख धर्म की स्थापना में राजपूतों का योगदान भाग-5 वीर सिक्ख राजपूत यौद्धा शहीद भाई ऊदा जी राठौड़ (रमाने राठौड़) श्री गुरु तेगबहादुर जी की दिल्ली के चांदनी चौंक में हुई शहादत के पश्चात उनके पावन धड़ का अंतिम संस्कार भाई लक्खी राय जी ने अपने घर को आग लगाकर कर दिया गया । दूसरी तरफ भाई जैता जी गुरु साहिब के शीश को उठा के चल पड़े । रास्ते में उनके पिता भाई अाज्ञा जी,भाई नानू जी व भाई ऊदा जी उनसे आ मिले । ये चारों सिख दिन रात सफर करके श्री आनंदपुर साहिब पहुंचे । गुरु गोबिन्द सिंघ जी ने सभी को प्यार दिया व विशेष रूप से भाई जैता जी को रंघरेटा गुरु का बेटा कह के सम्मान दिया । भाई अाज्ञा जी व भाई जैता जी रंघरेटा जाति से संबंध रखते थे और दिल्ली निवासी थे । भाई नानू जी छींबा जाति से संबंध रखते थे और वो भी दिल्ली निवासी थे । भाई ऊदा जी राठौड़ राजपूत घराने से संबंध रखते थे और उनकी शाखा "रमाने" थी । भाई ऊदा जी का जन्म राव खेमा चंदनीया जी के घर 14 जून 1646 ईस्वी को हुआ । आप राव धर्मा जी राठौड़ के पोते व राव भोजा जी राठौड़ के पड़पोते थे । आप की उस्ताद भाई बज्जर सिंघ जी राठौड़ के साथ भी रिश्ते

आलम सिंह चौहान नचणा जी,वीर सिक्ख राजपूत यौद्धा(Alam singh chauhan nachna, great sikh rajput warrior

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सिक्ख धर्म की स्थापना में राजपूतों का योगदान भाग--4 ****भाई आलम सिंह चौहान "नचणा" जी शहीद**** भाई आलम सिंह जी , चौहान राजपूत घराने से संबंध रखते थे। सूरज प्रकाश ग्रंथ,भट्ट बहियों,गुरु कीआं साखीयां आदि रचनाओं में इसका स्पष्ट उल्लेख है । "आलम सिंघ धरे सब आयुध,जात जिसी रजपूत भलेरी । खास मुसाहिब दास गुरु को,पास रहै नित श्री मुख हेरी । बोलन केर बिलास करैं, जिह संग सदा करुणा बहुतेरी । आयस ले हित संघर के,मन होए आनंद चलिओ तिस बेरी ।" (सूरज प्रकाश ग्रंथ- कवि संतोख सिंघ जी..रुत 6,अंसू 39,पन्ना 2948) भाई आलम सिंह जी का जन्म दुबुर्जी उदयकरन वाली,जिला स्यालकोट (अब पाकिस्तान) में सन् 1660 हुआ,जो उनके पूर्वजों ने सन् 1590 में बसाया था । भाई आलम सिंह जी के पिता राव (भाई)दुर्गा दास जी, दादा राव (भाई)पदम राए जी, परदादा राव (भाई)कौल दास जी ,सिख गुरु साहिबान के निकटवर्ती सिख व महान योद्धा थे । भाई आलम सिंह जी के दादा के भ्राता राव (भाई ) किशन राए जी छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी द्वारा  मुगलों के खिलाफ लड़ी करतारपुर की जंग में 27 अप्रैल 1635 को शहीद हुए थे । भाई आलम सिंह जी सन्