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Showing posts from January, 2013

क्षत्रिय राजपूत राजाओं की वंशावली

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Kshatriya Rajput king Kshatriya Rajput raja क्षत्रिय राजपूत राजाओं की वंशावली महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा हैः क्र. --शासक का नाम ----वर्ष ---माह--- दिन 1 राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir) 36 8 25 2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit) 60 0 0 3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay) 84 7 23 4 अश्वमेध (Ashwamedh ) 82 8 22 5 द्वैतीयरम (Dwateeyram ) 88 2 8 6 क्षत्रमाल (Kshatramal) 81 11 27 7 चित्ररथ (Chitrarath) 75 3 18 8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya) 75 10 24 9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain) 78 7 21 10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain) 78 7 21 11 भुवनपति (Bhuwanpati) 69 5 5 12 रणजीत (Ranjeet) 65 10 4 13 श्रक्षक (Shrakshak) 64 7 4 14 सुखदेव (Sukhdev) 62 0 24 15 नरहरिदेव (Narharidev) 51 10 2 16 शुचिरथ (Suchirath) 42 11 2 17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II) 58 10 8 18 पर्वतसेन (Parvatsain ) 55 8 10 19 मेधावी (Medhawi) 52 10 10 20 सोनचीर (Soncheer) 50 8 21 21 भीमदेव (Bheemdev) 47 9 20 22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II) 45 11 2

क्षत्रिय राजपूत राजाओं की वंशावली

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महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा हैः क्र. --शासक का नाम ----वर्ष ---माह--- दिन 1 राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir) 36 8 25 2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit) 60 0 0 3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay) 84 7 23 4 अश्वमेध (Ashwamedh ) 82 8 22 5 द्वैतीयरम (Dwateeyram ) 88 2 8 6 क्षत्रमाल (Kshatramal) 81 11 27 7 चित्ररथ (Chitrarath) 75 3 18 8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya) 75 10 24 9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain) 78 7 21 10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain) 78 7 21 11 भुवनपति (Bhuwanpati) 69 5 5 12 रणजीत (Ranjeet) 65 10 4 13 श्रक्षक (Shrakshak) 64 7 4 14 सुखदेव (Sukhdev) 62 0 24 15 नरहरिदेव (Narharidev) 51 10 2 16 शुचिरथ (Suchirath) 42 11 2 17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II) 58 10 8 18 पर्वतसेन (Parvatsain ) 55 8 10 19 मेधावी (Medhawi) 52 10 10 20 सोनचीर (Soncheer) 50 8 21 21 भीमदेव (Bheemdev) 47 9 20 22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II) 45 11 23 23 पूरनमाल (Pooranmal) 44 8 7 24 कर्दवी (Kardavi) 44 10 8 25 अलामामिक (Alama

उस राज कन्या ने मेवाड़ का भाग्य बदल दिया

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तुर्क हमलावर अलाउद्दीन खिलजी ने जैसे तैसे चित्तौड़ जीत कर अपने चाटुकार मालदेव को मेवाड़ का सूबेदार बना दिया था। युद्ध में रावल रतन सिंह सहित चित्तौड़ के वीरों ने केसरिया बाना पहन कर आत्माहुति दी। खिलजी की मौत के बाद मुहम्मद तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना तो मालदेव ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। सीसोदा की जागीर को छोड़कर लगभग सारा मेवाड़ तुर्कों के कब्जे में था और सिसोदा के राणा हम्मीर सिंह को इसी का दुख था। बापा रावल की सैंतीसवें पीढ़ी के रावल करण सिंह ने जब अपने बड़े बेटे क्षेम सिंह को मेवाड़ की बागडोर सौंपी तो छोटे बेटे राहप को राणा की पदवी दे सिसोदा की बड़ी जागीर दे दी। केलवाडा इस ठिकाने की राजधानी था। रावल क्षेम सिंह के वंश में आगे चलकर रावल रतन सिंह हुए। राणा राह्प के वंशज अरि सिंह इनके समकालीन थे और खिलजी से युद्ध करते हुए राणा अरि सिंह ने भी रावल रतन सिंह के साथ वीरगति पाई। उन्ही का युवा पुत्र हम्मीर इस समय केलवाडा में मेवाड़ को विदेशी दासता से मुक्त करने की योजना बना रहा था। पहले तो हम्मीर ने मालदेव का स्वाभिमान जगाने की कोशिश की ,पर जिसके खून में ही गुलामी आ गई हो वह दासता में ही

बीच युद्ध से लौटे राजा को रानी की फटकार

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बात जोधपुर की चल रही है तो यहाँ के अनेक राजाओं में एक और यशस्वी राजा जसवंत सिंह जी और उनकी हाड़ी रानी जसवंत दे की भी चर्चा कर ली जाए। महाराज जसवंत सिंह जी ने दिल्ली की और से बादशाह शाहजहाँ और औरंगजेब की और से कई सफल सैनिक अभियानों का नेतृत्व किया था तथा जब तक वे जीवित रहे तब तक औरंगजेब को कभी हिन्दू धर्म विरोधी कार्य नहीं करने दिया चाहे वह मन्दिर तोड़ना हो या हिन्दुओं पर जजिया कर लगना हो , जसवंत सिंह जी के जीते जी औरंगजेब इन कार्यों में कभी सफल नही हो सका। २८ नवम्बर १६७८ को काबुल में जसवंत सिंह के निधन का समाचार जब औरंगजेब ने सुना तब उसने कहा " आज धर्म विरोध का द्वार टूट गया है "। ये वही जसवंत सिंह थे जिन्होंने एक वीर व निडर बालक द्वारा जोधपुर सेना के ऊंटों की व उन्हें चराने वालों की गर्दन काटने पर सजा के बदले उस वीर बालक की स्पष्टवादिता,वीरता और निडरता देख उसे सम्मान के साथ अपना अंगरक्षक बनाया और बाद में अपना सेनापति भी। यह वीर बालक कोई और नहीं इतिहास में वीरता के साथ स्वामिभक्ति के रूप में प्रसिद्ध वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ था। महाराज जसवंत सिंह जिस तरह से वीर पुरुष थे ठ

रानी पद्मिनी

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रानी पद्मिनी रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रतन सिंह चित्तौड़ की राजगद्दी पर बैठा । रत्नसिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी । उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर दूर तक फैली थी । उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चित्तौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी । उसने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चित्तौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिकों के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेराबंदी व युद्ध के बावजूद वह चित्तौड़ के किले में घुस नहीं पाया । तब उसने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चित्तौड़ रतन सिंह के पास भेज संदेश भेजा कि "हम तो आपसे मित्रता करना चाहते है रानी की सुन्दरता के बारे बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुंह दिखा दीजिए हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जाएंगे । सन्देश सुनकर रत्नसिंह आग बबूला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रतन सिंह को समझाया कि " मेरे कारण व्यर्थ ही चित्तौड़ के सैनिको का रक्

HOW TO DEATH PANSINGH TOMAR

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The Rajput Power

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"हम मृत्यु वरण करने वाले जब जब हथियार उठाते हैं तब पानी से नहीं शोणित से अपनी प्यास बुझाते हैं हम राजपूत वीरो का जब सोया अभिमान जगता हैं तब महाकाल भी चरणों पे प्राणों की भीख मांगता हैं

Rajput Palace Jaipur, India qwert

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Rajput Palace Jaipur ,  India

राजस्थान के लोक देवता श्री पाबूजी राठौङ

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राजस्थान के लोक देवता श्री पाबूजी राठौङ राजस्थान के लोक देवता श्री पाबूजी राठौड़ की कथा श्रृंखला की यह दूसरी कड़ी है । पाठकों से निवेदन है कि इस लेख को इतिहास की कसौटी पर ना परखे क्यों कि यह एक कथा है और जन मानस के मुख से सुनी हुई है । श्री पाबूजी राठौड़ का जन्म कोळू ग्राम में हुआ था । कोळू ग्राम जोधपुर से फलोदी जाने है तो रास्ते में आता है । कोळू ग्राम के जागीरदार थे धांधल जी । धांधल जी की ख्याति व नेक नामी दूर दूर तक थी । एक दिन सुबह सवेरे धांधलजी अपने तालाब पर नहा के भगवान सूर्य को जल तर्पण कर रहे थे । तभी वहां पर एक बहुत ही सुन्दर अप्सरा जमीन पर उतरी। राजा धांधल उसे देखकर मोहित हो गये । उन्होने अप्सरा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा । जवाब में अप्सरा ने एक वचन मांगा कि राजन आप जब भी मेरे कक्ष में प्रवेश करोगे तो सुचना करके ही प्रवेश करोगे ।जिस दिन आप वचन तोङेगे मै उसी दिन स्वर्ग लोक लौट जाऊंगी।  राजा ने वचन दे दिया । कुछ समय बाद धांधलजी के घर में पाबूजी के रूप में अप्सरा रानी के गर्भ से पुत्र प्राप्ति होती है । समय अच्छी तरह बीत रहा था । एक दिन भूलवश या कौतुहलवश धांधलजी अप्सरा रानी

लोक देवता बाबा रामदेव पीर

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लोक देवता बाबा रामदेव पीर भारत की इस पवित्र धरती पर समय समय पर अनेक संतों,महात्माओं,वीरों व सत्पुरुषों ने जन्म लिया है। युग की आवश्यकतानुसार उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के बल से, दुखों से त्रस्त मानवता को दुखों से मुक्ति दिला जीने की सही राह दिखाई। १५ वी. शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थिति बड़ी अराजक बनी हुई थी। ऐसे विकट समय में पश्चिमी राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर चेत्र शुक्ला पंचमी वि.स. 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछूत का विरोध कर अछुतोद्वार का सफल आंदोलन चलाया। हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तैंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकड़ों वर्षों में भी होना सम्भव नही था। सभी प्रकार के भेदभाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भाईयों के लिए रामसा पीर। मुस्लिम भक्त बाबा को

राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़

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LOK DEVTA OF RAJASTHAN राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़ कल्ला जी राठौड़ कल्ला जी का जन्म विक्रमी संवत १६०१ को दुर्गाष्टमी को मेड़ता में हुआ, मेड़ता रियासत के राव जयमल के छोटे भाई आस सिंह के पुत्र थे । बचपन मेड़ता में ही बीता । कल्ला जी अपनी कुलदेवी नागणेची जी के बड़े भक्त थे। उनकी आराधना करते हुए योगाभ्यास भी किया । इसी के साथ औषधि विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर वे कुशल चिकित्सक भी हो गए थे । उनके गुरु प्रसिद्ध योगी भैरव नाथ थे । उनकी मूर्ति के चार हाथ होते है । इसके बारे में कहा जाता है कि सन १५६८ में अकबर की सेना ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया था । किले की रसद ख़त्म हो गयी थी । सेनापति जयमल राठौड़ ने केसरिया बाना पहन कर शाका का व क्षत्राणियों ने जौहर का फैसला किया किले का दरवाजा खोल कर चितौड़ सेना मुगलों पर टूट पड़ी । सेनापति जयमल राठौड़ के पैरो में गोली लगने से वे घायल हो गए थे । उनको युद्ध करने की बड़ी तीव्र इच्छा थी । किन्तु उठा नहीं जा रहा था । कल्ला जी राठौड़ से उनकी ये हालत देखी नहीं गयी । उन्होंने जयमल को अपने कंधो पर बैठा लिया व उनके दोनों हाथों में तलवार दे दी और स्वयं भी

राजस्थान के लोक देवता श्री गोगा जी चौहान

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राजस्थान की लोक कथाओं में असंख्य देवी देवताओं की कथा सुनने में आती है। इन कथाओं में एक कथा श्री जाहर वीर गोगा जी चौहान की भी है। मै इस कथा के बारे में लिखने से पहले पाठकों को एक बात बताता चलू की यह कथा इतिहास के नजरिये से अगर आप देखते है तो इसमें बहुत से विवाद और पेच है। और जनमानस की भावना के दृष्टीकोण से देखने पर यह आपको एक सुन्दर कथा लगेगी। वर्तमान काल में जिसे ददरेवा कहा जाता है यह जिला चुरू (राज.) में आता है । इसका पुराना ऐतिहासिक महत्व भी था क्यों की यह चौहान शासकों की राजधानी थी । ददरेवा के राजा जीव राज जी चौहान की पत्नी ने भगवान की भक्ति की जिसके फलस्वरूप वहा गुरु गोरखनाथ जी महाराज पधारे और उन्होंने बछल देवी को सन्तानोपत्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ समय उपरांत उनके घर एक सुन्दर राजकुमार का जन्म हुआ। जिसका नाम भी गुरु गोरखनाथ जी के नाम के पहले अक्षर से ही रखा गया। यानी गुरु का गु और गोरख का गो यानी की गुगो जिसे बाद में गोगा जी कहा जाने लगा। गोगा जी ने गूरू गोरख नाथ जी से तंत्र की शिक्षा भी प्राप्त की थी। यहाँ राजस्थान में गोगा जी को सर्पो के देवता के रूप में पूजा जाता है। कुछ कथाकार

जितना मेरी जिद नही आदत qwert

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 "सोहरत मेरा जूनून, दोलत मेरा नसा, खौफ मेरा हथियार, इशारों पे  दुनिया, कदमो में किस्मत,जितना मेरी जिद नही आदत ........"

राजपूतो की सूची

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# क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलंदशहर आगरा मेरठ अलीगढ गहलोत बैजवापेण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले सिसोदिया बैजवापेड सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट कछवाहा मानव सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य राठोड कश्यप सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा सोमवंशी अत्रय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई यदुवंशी अत्रय चन्द राजकरौली राजपूताने में भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज जादवा अत्रय जादौन शाखा अवाकोटला ऊमरगढ आगरा तोमर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिए तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर देवडा वत्