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Showing posts from September, 2016

पृथ्वीराज रासो अथवा पृथ्वीराज विजय में कौन अधिक प्रमाणिक??

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कल रात एबीपी न्यूज़ पर उनके धारावाहिक "भारतवर्ष" में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर प्रसारण हुआ, इस एपिसोड में साफ़ दिखाई दिया कि पृथ्वीराज चौहान और उनके शासन काल/उत्थान/पतन का प्रमाणिक वर्णन करने में चन्दबरदाई कृत काव्य ग्रन्थ "पृथ्वीराज रासो" पूर्ण सक्षम नही है, न तो पृथ्वीराज रासो में उल्लिखित घटनाओं के तिथि संवत का ऐतिहासिक साक्ष्यों से मिलान होता है न ही कई घटनाओं की पुष्टि होती है,हाँ पृथ्वीराज के दरबार में ही एक कश्मीरी ब्राह्मण जयानक थे जिन्होंने पृथ्वीराज के जीवनकाल में ही "पृथ्वीराज विजय" ग्रन्थ लिखा था जिसमे दर्ज घटनाओं और तिथि संवत का शत प्रतिशत प्रमाणन ऐतिहासिक साक्ष्यों से हो जाता है,यह ग्रन्थ अधिक प्रसिद्ध नही हुआ तथा चौहान साम्राज्य के ढहते ही ओझल सा हो गया,ब्रिटिशकाल में एक अधिकारी बुलर महोदय को कश्मीर यात्रा के समय यह ग्रन्थ जीर्ण शीर्ण अवस्था में मिला तो उसमे उल्लिखित घटनाएं और संवत पूर्णतया सही पाए गए,पर दुर्भाग्य से पृथ्वीराज विजय का एक भाग ही प्राप्त हो पाया है,दूसरा भाग अभी तक अप्राप्य है। तभी से समस्त इतिहासकार एकमत हैं कि पृथ्वीरा

सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के योद्धा क्रांतिवीर बरजीरसिंह,तांत्या टोपे के दाहिने हाथ

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जय क्षात्र धर्म की मित्रों , आज हमने कुछ समय पहले एक पोस्ट श्रृंखला शुरू की थी जिसमे आपको पोस्ट के माध्यम 1857 की क्रांति में महान राजपूत नायकों द्वारा दिए गए योगदानो से अवगत कराना था। आज उसी श्रृंखला में आगे बढ़ते हुये बुंदेलखंड के महान नायक क्रांतिवीर योद्धा बरजीर सिंह के बारे में बताएँगे। कृपया इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा पढ़ें और शेयर करें। ^^^^^प्रथम स्वातंत्र्य समर के योद्धा क्रांतिवीर बरजीरसिंह^^^^ सन १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर में देश के कोने कोने में स्वतंत्रता प्रेमियों ने अंग्रेजो को कड़ी चुनौती दी थी। इस महासंग्राम में देश की जनता ने भी क्रांतिकारियों का पूरा साथ दिया। क्रांति के इस महायज्ञ में अनेक वीरो ने अपने जीवन की आहुतियाँ दी थी। उनमे से कुछ सूरमा ऐसे भी थे,जो जीवन भर अंग्रेजो से संघर्ष करते रहे लेकिन कभी अंग्रेजो की गिरफ्त में नहीं आए। ऐसे ही एक योद्धा थे बरजीर सिंह।झाँसी और कालपी के मध्य में स्थित बिलायाँ गढ़ी के बरजीर सिंह ने अंग्रेजो का सामना करने के साथ साथ क्षेत्र में जनसंपर्क द्वारा जनजागृति का महत्वपूर्ण कार्य किया। जब झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई झांसी से कालपी ज

अशोक चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल शांति स्वरूप राणा Shanti swaroop rana,Ashok chakra winner soldier

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====अशोक चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल शांति स्वरूप् राणा==== ---------------------------------------- जीवन परिचय---- स्वर्गीय Col शांति स्वरुप राणा जी का जन्म 17 सितम्बर 1949 में होशियपुर पंजाब के baila नामक गाँव में हुआ था।वे चार भाइयो और तीन बहनो में सबसे छोटे थे।उनके पिता जी बड़े प्रभावशाली जमीदार थे। 11 जून 1977 को उन्हें भारतीय सेना में कमीशन मिला था। वीरता और सर्वोच्च बलिदान---------- शुरुआत में शांति स्वरुप राणा जी की नियुक्ति सेना में सिग्नल सैनिक के पद पर हुआ था लेकिन प्रतिभा के बल पर बाद में ये आर्मी कैडेट कॉलेज देहरादून में अधिकारी की ट्रेनिंग के लिए सेना की तरफ से चुने गए। ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद इन्हें 3 बिहार रेजिमेंट में 11 जुलाई 1977 को नियुक्त किया गया। ऑपरेशन राइनो , ऑपरेशन पवन , ऑपरेशन रक्षक जैसे बड़े सैन्य अभियानो में अपना जौहर दिखाने के कारण इन्हें 13 राष्ट्रिय राइफल में 2 IC के स्थान पर पदोन्नत किया गया। सन् 1994 को Lt COL के पद पर नियुक्त किया गया। 2 नवंबर 1996 को Lt Col राणा को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा के हफरुदा जंगलों में दो आंतकवादी ठिकानों को ध्वस्त करने की