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Showing posts from October, 2017

प्राचीन गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश) और आधुनिक गुजरात राज्य मे क्या अंतर है?

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प्राचीन गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश) और आधुनिक गुजरात मे क्या अंतर है?--- प्राचीन गुर्जरात्रा या असली गुजरात आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान में था, इसमें आज के राजस्थान के पाली,जालौर,सिरोही, भीनमाल(बाड़मेर का कुछ हिस्सा), कुछ हिस्सा जोधपुर व् कुछ हिस्सा मेवाड़ का सम्मिलित था, (इसका नामकरण 5 वी सदी के आसपास गुर्जरात्रा क्यों हुआ इसके विषय में अलग से पोस्ट करूँगा) भीनमाल प्राचीन गुर्जरात्रा की राजधानी थी, जिस पर हर्षवर्धन के समय चावड़ा राजपूत व्याघ्रमुख शासन करते थे।चावड़ा वंश को उनके लेखों में चापोतक्ट लिखा मिलता है। चावड़ा वंश परमार राजपूतो की शाखा माना जाता है तथा अभी भी राजस्थान गुजरात उत्तर प्रदेश में चावड़ा वंश की आबादी है, गुजरात मे तो चावड़ा राजपूतो की आज भी स्टेट हैं। कालांतर में चावड़ा वंश का शासन भीनमाल से समाप्त हो गया और उन्होंने प्राचीन आनर्त देश(आज के गुजरात का उत्तरी भाग) में पाटन अन्हिलवाड़ को राजधानी बनाया तथा अपने प्राचीन राज्य गुर्जरात्रा की स्मृति में नए स्थापित राज्य का नाम भी गुर्जरात्रा रख दिया। प्राचीन गुर्जरात्रा पर इसके कुछ समय बाद ही नागभट्ट प्रतिहार ने कब्जा कर लिया तथा इस ग

पुण्डीर क्षत्रिय वंश की कुलदेवी दधिमती माता का मन्दिर

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पुण्डीर क्षत्रियों की कुलदेवी "दधिमती माता" का मंदिर----- नागौर जिले में जायल तहसील में गोठ मॉगलोद गांव में दधिमाती माता का मंदिर स्थित है। दधिमती माता को लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है,और ये पुराणों में वर्णित 51 शक्तिपीठों में एक मानी जाती हैं। पुरातत्व विभाग इस मंदिर को दो हजार पूर्व से निर्मित मानता है। आपने आज तक जितने भी खम्बे या पिलर देखे उनमे आपने यही देखा होगा कि खम्बे आधार हेतु बनते है लेकिन यहाँ आप अधर खम्भ को हवा में झूलते देख सकते है मान्यता है कि जिस दिन यह खम्भ पृथ्वी से छू जाएगा उस दिन प्रलय होगी और चहु ओर विनाश ही विनाश होगा। माना जाता है की मुख्य नवरात्रि की सप्तमी को जो कोई महाआरती के बाद यहां नहाता है उसको गंगा,यमुना,नर्मदा सहित सभी पुण्यशाली नदियों में नहाने का फल मिलता है ।यह कुंड कभी सूखता नही है और ना ही कभी इसका जल ऊपर की सीढ़ी पार करता है इसकी गहराई को कोई नही नाप सकता क्योंकि इस गहराई अथाह है । दधिमती माता मंदिर व क्षेत्र का इतिहास-------- राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार ‘‘इस मंदिर के आस-पास का प्रदेश प्राचीनकाल में दध