राजस्थान के लोक देवता श्री पाबूजी राठौङ

राजस्थान के लोक देवता श्री पाबूजी राठौङ

राजस्थान के लोक देवता श्री पाबूजी राठौड़ की कथा श्रृंखला की यह दूसरी कड़ी है । पाठकों से निवेदन है कि इस लेख को इतिहास की कसौटी पर ना परखे क्यों कि यह एक कथा है और जन मानस के मुख से सुनी हुई है । श्री पाबूजी राठौड़ का जन्म कोळू ग्राम में हुआ था । कोळू ग्राम जोधपुर से फलोदी जाने है तो रास्ते में आता है । कोळू ग्राम के जागीरदार थे धांधल जी । धांधल जी की ख्याति व नेक नामी दूर दूर तक थी । एक दिन सुबह सवेरे धांधलजी अपने तालाब पर नहा के भगवान सूर्य को जल तर्पण कर रहे थे । तभी वहां पर एक बहुत ही सुन्दर अप्सरा जमीन पर उतरी। राजा धांधल उसे देखकर मोहित हो गये । उन्होने अप्सरा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा । जवाब में अप्सरा ने एक वचन मांगा कि राजन आप जब भी मेरे कक्ष में प्रवेश करोगे तो सुचना करके ही प्रवेश करोगे ।जिस दिन आप वचन तोङेगे मै उसी दिन स्वर्ग लोक लौट जाऊंगी। 


राजा ने वचन दे दिया । कुछ समय बाद धांधलजी के घर में पाबूजी के रूप में अप्सरा रानी के गर्भ से पुत्र प्राप्ति होती है । समय अच्छी तरह बीत रहा था । एक दिन भूलवश या कौतुहलवश धांधलजी अप्सरा रानी के कक्ष में बिना सूचित किये प्रवेश कर जाते है । वे देखते है कि अप्सरा रानी पाबूजी को सिंहनी के रूप में दूध पिला रही है । राजा को आया देख अप्सरा अपने असली रूप मे आ जाती है और राजा धांधल से कहती है कि "हे राजन आपने अपने वचन को तोङ दिया है इसलिये अब मै आपके इस लोक में नही रह सकती हूं । मेरे पुत्र पाबूजी कि रक्षार्थ व सहयोग हेतु मै दुबारा एक घोड़ी(केशर कालमी) के रूप में जन्म लूगीं । यह कह कर अप्सरा रानी अंतर्ध्यान हो जाती है। समय पाकर पाबूजी महाराज बड़े हो जाते है । गुरू समरथ भारती जी द्वारा उन्हें शस्त्रों की दीक्षा दी जाती है । धांधल जी के निधन के बाद नियमानुसार राजकाज उनके बड़े भाई बुङा जी द्वारा किया जाता है । इसीबात को विडीयो मे भी दिखाया है ।


क्या कभी ऊंट के पांच पैर थे ? गुजरात राज्य मे एक स्थान है अंजार वैसे तो यह स्थान अपने चाकू,तलवार,कटार आदि बनाने के लिये प्रसिद्ध है । इस स्थान का जिक्र मै यहाँ इस लिये कर रहा हूं क्यों कि देवल चारणी यही कि वासी थी । उसके पास एक काले रंग की घोडी थी । जिसका नाम केसर कालमी था । उस घोडी की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली हुई थी। उस घोडी को को जायल (नागौर) के जिन्द राव खींची ने डोरा बांधा था । और कहा कि यह घोडी मै लुंगा । यदि मेरी इच्छा के विरूद्ध तुम ने यह घोडी किसी और को दे दी तो मै तुम्हारी सभी गायों को ले जाउगां ।


एक रात श्री पाबूजी महाराज को स्वप्न आता है और उन्हें यह घोडी (केशर कालमी) दिखायी देती है । सुबह वो इसे लाने का विचार करते है । और अपने खास सरदार चान्दा जी, डेमा जी के साथ अंजार के लिये कूच करते है । देवल चारणी उनकी अच्छी आव भगत करती है और आने का प्रयोजन पूछती है । श्री पाबूजी महाराज देवल से केशर कालमी को मांगते है । देवल उन्हें मना कर देती है और उन्हें बताती है कि इस घोडी को जिन्द राव खींची ने डोरा बांधा है और मेरी गायो के अपहरण कि धमकी भी दी हुइ है । यह सुनकर श्री पाबूजी महाराज देवल चारणी को वचन देते है कि तुम्हारी गायों कि रक्षा कि जिम्मेदारी आज से मेरी है । जब भी तुम विपत्ति में मुझे पुकारोगी अपने पास ही पाओगी । उनकी बात सुनकर के देवल अपनी घोडी उन्हें दे देती है ।

श्री पाबूजी महाराज के दो बहिन होती है पेमल बाइ व सोनल बाइ । जिन्द राव खींची का विवाह श्री पाबूजी महाराज कि बहिन पेमल बाइ के साथ होता है । सोनल बाइ का विवाह सिरोही के महाराज सूरा देवडा के साथ होता है । जिन्द राव शादी के समय दहेज मे केशर कालमी की मांग करता है । जिसे श्री पाबूजी महाराज के बडे भाई बूढा जी द्वारा मान लिया जाता है लेकिन श्री पाबूजी महाराज घोडी देने से इंकार कर देते है इस बात पर श्री पाबूजी महाराज का अपने बड़े भाई के साथ मनमुटाव हो जाता है ।

अमरकोट के सोढा सरदार सूरज मल जी की पुत्री फूलवन्ती बाई का रिश्ता श्री पाबूजी महाराज के लिये आता है । जिसे श्री पाबूजी महाराज सहर्ष स्वीकार कर लेते है । तय समय पर श्री पाबूजी महाराज बारात लेकर अमरकोट के लिये प्रस्थान करते है । कहते है कि पहले ऊंट के पांच पैर होते थे इस वजह से बरात धीमे चल रही थी । जिसे देख कर श्री पाबूजी महाराज ने ऊंट के बीच वाले पैर के नीचे हथेली रखकर उसे ऊपर पेट की तरफ धकेल दिया जिससे वह पेट में घुस गया । आज भी ऊंट के पेट पैर पांचवे पैर का निशान है ।

इधर देवल चारणी की गायों को जिन्दा राव खींची ले जाता है। देवल चारणी काफी मिन्नते करती है लेकिन वह नहीं मानता है , और गायों को जबरन ले जाता है। देवल चारणी एक चिडिया का रूप धारण करके अमर कोट पहुंच जाती है। अमर कोट में उस वक्त श्री पाबूजी महाराज की शादी में फेरों की रस्म चल रही होती है तीन फेरे ही लिए थे की चिड़िया के वेश में देवल चारणी ने वहा रोते हुए आप बीती सुनाई। उसकी आवाज सुनकर पाबूजी का खून खोल उठा और वे रस्म को बीच में ही छोड़ कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते है। (कहते है उस दिन से राजपूतो में आधे फेरों का ही रिवाज कल पड़ा )

पाबूजी महाराज अपने जीजा जिन्दराव खिंची को ललकारते है। वहा पर भयानक युद्ध होता है। पाबूजी महाराज अपने युद्ध कौशल से जिन्दराव को परास्त कर देते है लेकिन बहिन के सुहाग को सुरक्षित रखने के लिहाज से जिन्दराव को जिंदा छोड़ देते है।सभी गायों को लाकर वापस देवल चारणी को सौंप देते है और अपनी गायों को देख लेने को कहते है। देवल चारणी कहती है की एक बछड़ा कम है। पाबूजी महाराज वापस जाकर उस बछड़े को भी लाकर दे देते है।

रात को अपने गाँव गुन्जवा में विश्राम करते है तभी रात को जिन्दराव खींची अपने मामा फूल दे भाटी के साथ मिल कर सोते हुओं पर हमला करता है। जिन्दराव के साथ पाबूजी महाराज का युद्ध चल रहा होता है और उनके पीछे से फूल दे भाटी वार करता है। और इस प्रकार श्री पाबूजी महाराज गायो की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे देते है। पाबूजी महाराज की रानी फूलवंती जी , व बूढा जी की रानी गहलोतनी जी व अन्य राजपूत सरदारों की राणियां अपने अपने पति के साथ सती हो जाती है। कहते है की बूढाजी की रानी गहलोतनी जी गर्भ से होती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गर्भवती स्त्री सती नहीं हो सकती है। इस लिए वो अपना पेट कटार से काट कर पेट से बच्चे को निकाल कर अपनी सास को सोंप कर कहती है की यह बड़ा होकर अपने पिता व चाचा का बदला जिन्दराव से जरूर लेगा। यह कह कर वह सती हो जाती है। कालान्तर में वह बच्चा झरडा जी ( रूपनाथ जो की गुरू गोरखनाथ जी के चेले होते है ) के रूप में प्रसिद्ध होते है तथा अपनी भुवा की मदद से अपने फूफा को मार कर बदला लेते है और जंगल में तपस्या के लिए निकल जाते है।

पाठक मित्रों को बोरियत से बचाने के लिये कथा को सीमित कर दिया गया है । पिछली पोस्ट में कही टिप्पणी करते हुए ताऊ ने पूछा कि गोगा जी अलग थे क्या ? जवाब में अभी मै इतना ही कहूंगा कि गोगाजी चौहान वंश में हुए थे श्री पाबूजी महाराज के बड़े भाई बूढा जी की पुत्री केलम दे के पति थे। 

Comments

Popular posts from this blog

भोजनान्ते विषम वारि

राजपूत वंशावली

क्षत्रिय राजपूत राजाओं की वंशावली