उस राज कन्या ने मेवाड़ का भाग्य बदल दिया

तुर्क हमलावर अलाउद्दीन खिलजी ने जैसे तैसे चित्तौड़ जीत कर अपने चाटुकार मालदेव को मेवाड़ का सूबेदार बना दिया था। युद्ध में रावल रतन सिंह सहित चित्तौड़ के वीरों ने केसरिया बाना पहन कर आत्माहुति दी। खिलजी की मौत के बाद मुहम्मद तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना तो मालदेव ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। सीसोदा की जागीर को छोड़कर लगभग सारा मेवाड़ तुर्कों के कब्जे में था और सिसोदा के राणा हम्मीर सिंह को इसी का दुख था।
बापा रावल की सैंतीसवें पीढ़ी के रावल करण सिंह ने जब अपने बड़े बेटे क्षेम सिंह को मेवाड़ की बागडोर सौंपी तो छोटे बेटे राहप को राणा की पदवी दे सिसोदा की बड़ी जागीर दे दी। केलवाडा इस ठिकाने की राजधानी था। रावल क्षेम सिंह के वंश में आगे चलकर रावल रतन सिंह हुए। राणा राह्प के वंशज अरि सिंह इनके समकालीन थे और खिलजी से युद्ध करते हुए राणा अरि सिंह ने भी रावल रतन सिंह के साथ वीरगति पाई। उन्ही का युवा पुत्र हम्मीर इस समय केलवाडा में मेवाड़ को विदेशी दासता से मुक्त करने की योजना बना रहा था।
पहले तो हम्मीर ने मालदेव का स्वाभिमान जगाने की कोशिश की ,पर जिसके खून में ही गुलामी आ गई हो वह दासता में ही अपना गौरव समझता है। इसलिए उसने उलटे हम्मीर को ही तुर्कों की शरण में आने को कहा। हमीर ने मालदेव और तुर्कों पर छापेमार कर हमले करने शुरू कर दिए। मालदेव ने इस से बचने के लिए चाल सोची और हम्मीर को अपनी लड़की की शादी के प्रस्ताव का नारियल भिजवाया।
हम्मीर ने काफी सोच विचार के बाद उस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। और तय समय पर अपने गुप्तचरों और सैनिकों के साथ चित्तौड़ दुर्ग पहुंच गए। वहां जाकर दुर्ग का निरीक्षण किया। विवाह के बाद उनका साक्षात्कार राजकुमारी सोनगिरी से हुआ तो राजकुमारी ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया " महाराज मै आपके शत्रु की कन्या हूँ इसलिए मै आपके योग्य नहीं हूँ मेरे पिता तुर्कों के साथ है लेकिन मै आपका साथ देकर मातृभूमि के लिए संघर्ष करूंगी। "
हम्मीर उसकी देशभक्ती से प्रभावित हुए वे बोले " देवी अब आप सिसोदा की रानी है। अब आपका लक्ष्य भी हमारा लक्ष्य है। हम मिल कर मेवाड़ की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ेंगे।" सोनगिरी ने कहा महाराज आप दहेज में दीवान मौजा राम मोहता को मांग लीजिये वे बहुत नीतिग्य और देश भक्त है।
मालदेव ने सोचा की मोहता अपने लिए गुप्तचरी करेंगे यह समझ कर उन्होंने सहर्ष हम्मीर की बात मान दीवान मोहता को उनके साथ कर दिया। हमीर की विदाई रानी और मोहता के साथ कर दी गयी। दुर्ग के कपाट बंद कर किलेदार को आदेश दिया गया की आज से हम्मीर या उनका कोई सैनिक इस किले में ना आ पाये।
थोड़ी दूर जाने पर दीवान मोहता ने हम्मीर से कहा कि महाराज मालदेव आपको असावधान करके केलवाड पर हमला करने की फिराक में है। लेकिन अभी तुगलक ने उसे सेना सहित सिंगरौली बुलाया है। वह कूच करने वाला है। इसलिए चितौड़ विजय का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।
मोहता की बात सुन कर हम्मीर ने पास के ही जंगल में डेरा डाल दिया और मालदेव के सिंगरौली जाने का इन्तजार करने लगे। जैसे हे उन्हें अपने गुप्तचरों के द्वारा मालदेव के बाह जाने का सन्देश मिला अपने सैनिको को इकठ्ठा करके वापस किले की तरफ रवाना हो गए। राणा हम्मीर भी स्त्री वेष में हो लिए और मोहता मोजा राम को आगे कर दिया। खुद पालकी में बैठ गए। रात्री का समय हो गया था किले के दरवाजे पर जाकर आवाज लगाई "द्वारा खोलो मै दीवान मोजा राम मोहता हूँ , राजकुमारी पीहर आयी है। किले दार ने झांक कर देखा तो उन्हें मोजा राम पालकी के साथ दिखाई दिए तो उन्हें कोइ ख़तरा ना जान और मोजा राम तो अपने आदमी है तथा आदेश केवल राणा हम्मीर के लिए ही था सो किले दार ने ज्यादा बिचार किये बिना द्वार खोल दिए। अन्दर घुसते ही राणा हम्मीर और सैनिको ने द्वार रक्षक सैनिको का काम तमाम कर दिया। अगले द्वार पर भी यही प्रक्रिया दोहराई गयी। किले में मालदेव के थोड़े से ही सैनिक थे इस लिए बात ही बात में किले पर राणा हमीर का कब्जा हो गया। सुबह की पहली किरन के साथ ही केसरिया ध्वज लहरा दिया गया।
मालदेव को पता लगा तो वह उलटे पैर चित्तौड़ की ओर दौड़ा पर हम्मीर ने उसे रास्ते में ही दबोच लिया। उसके सैनिक भी हम्मीर के साथ हो लिए। अब बिना समय गवाए हम्मीर ने सिंगरौली में बैठे तुगलक पर हमला बोल दिया उसके सैनिक भाग गए और तुगलक पकड़ा गया। तीन महीने तक कारागार में रहने के बाद मेवाड़ के साथ साथ अजमेर व नागौर के इलाके पचास लाख रूपये और सो हाथी देकर अपने प्राण बचाए।
राणा हम्मीर अब पूरे मेवाड़ के महाराणा हो गए। यहीं से मेवाड़ के सिसोदिया वंश का काल खंड शुरू हुआ। राष्ट्र भक्त क्षत्राणी महारानी सोनगिरी ने राष्ट्र - हित में अपने पिता को त्याग कर मेवाड़ को पुन भारत का मुकुट बना दिया। तुर्क हमलावर अलाउद्दीन खिलजी ने जैसे तैसे चित्तौड़ जीत कर अपने चाटुकार मालदेव को मेवाड़ का सूबेदार बना दिया था। युद्ध में रावल रतन सिंह सहित चित्तौड़ के वीरो ने केसरिया बाना पहन कर आत्माहुति दी। खिलजी की मौत के बाद मुहम्मद तुगलक दिल्ली का सुलतान बना तो मालदेव ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। सीसोदा की जागीर को छोड़कर लगभग सारा मेवाड़ तुर्कों के कब्जे में था और सिसोदा के राणा हम्मीर सिंह को इसी का दुःख था।
बप्पा रावल की सैंतीसवें पीढी के रावल करण सिंह ने जब अपने बड़े बेटे क्षेम सिंह को मेवाड़ की बागडोर सौंपी तो छोटे बेटे राहप को राणा की पदवी दे सिसोदा की बड़ी जागीर दे दी। केलवाडा इस ठिकाने की राजधानी था। रावल क्षेम सिंह के वंश में आगे चलकर रावल रतन सिंह हुए। राणा राह्प के वंशज अरि सिंह इनके समकालीन थे और खिलजी से युध करते हुए राणा अरि सिंह ने भी रावल रतन सिंह के साथ वीरगति पाई। उन्ही का युवा पुत्र हम्मीर इस समय केलवाडा में मेवाड़ को विदेशी दासता से मुक्त करने की योजना बना रहा था।

पहले तो हम्मीर ने मालदेव का स्वाभिमान जगाने की कोशिश की ,पर जिसके खून में ही गुलामी आ गई हो वह दासता में ही अपना गौरव समझता है। इसलिए उसने उलटे हम्मीर को ही तुर्कों की शरण में आने को कहा। हमीर ने मालदेव और तुर्कों पर छापेमार कर हमले करने शुरू कर दिए। मालदेव ने इस से बचने के लिए चाल सोची और हम्मीर को अपनी लड़की की शादी के प्रस्ताव का नारियल भिजवाया।
हम्मीर ने काफी सोच विचार के बाद उस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। और तय समय पर अपने गुप्तचरों और सैनिकों के साथ चित्तौड़ दुर्ग पहुंच गए। वहां जाकर दुर्ग का निरीक्षण किया। विवाह के बाद उनका साक्षात्कार राजकुमारी सोनगिरी से हुआ तो राजकुमारी ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया " महाराज मै आपके शत्रु की कन्या हूँ इसलिए मै आपके योग्य नहीं हूँ मेरे पिता तुर्कों के साथ है लेकिन मै आपका साथ देकर मातृभूमि के लिए संघर्ष करूंगी। "
हम्मीर उसकी देशभक्ती से प्रभावित हुए वे बोले " देवी अब आप सिसोदा की रानी है। अब आपका लक्ष्य भी हमारा लक्ष्य है। हम मिल कर मेवाड़ की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ेंगे।" सोनगिरी ने कहा महाराज आप दहेज में दीवान मौजा राम मोहता को मांग लीजिये वे बहुत नीतिग्य और देश भक्त है।
मालदेव ने सोचा की मोहता अपने लिए गुप्तचरी करेंगे यह समझ कर उन्होंने सहर्ष हम्मीर की बात मान दीवान मोहता को उनके साथ कर दिया। हमीर की विदाई रानी और मोहता के साथ कर दी गयी। दुर्ग के कपाट बंद कर किलेदार को आदेश दिया गया की आज से हम्मीर या उनका कोई सैनिक इस किले में ना आ पाये।
थोड़ी दूर जाने पर दीवान मोहता ने हम्मीर से कहा की महाराज मालदेव आपको असावधान करके केलवाड पर हमला करने की फिराक में है। लेकिन अभी तुगलक ने उसे सेना सहित सिंगरौली बुलाया है। वह कूच करने वाला है। इस लिए चितौड़ विजय का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।
मोहता की बात सुन कर हम्मीर ने पास के ही जंगल में डेरा डाल दिया और मालदेव के सिंगरौली जाने का इंतज़ार करने लगे। जैसे हे उन्हें अपने गुप्तचरों के द्वारा मालदेव के बाह जाने का सन्देश मिला अपने सैनिको को इकठ्ठा करके वापस किले की तरफ रवाना हो गए। राणा हम्मीर भी स्त्री वेष में हो लिए और मोहता मोजा राम को आगे कर दिया। खुद पालकी में बैठ गए। रात्री का समय हो गया था किले के दरवाजे पर जाकर आवाज लगाई "द्वारा खोलो मै दीवान मोजा राम मोहता हूँ , राजकुमारी पीहर आयी है। किले दार ने झांक कर देखा तो उन्हें मोजा राम पालकी के साथ दिखाई दिए तो उन्हें कोइ ख़तरा ना जान और मोजा राम तो अपने आदमी है तथा आदेश केवल राणा हम्मीर के लिए ही था सो किले दार ने ज्यादा बिचार किये बिना द्वार खोल दिए। अन्दर घुसते ही राणा हम्मीर और सैनिको ने द्वार रक्षक सैनिको का काम तमाम कर दिया। अगले द्वार पर भी यही प्रक्रिया दोहराई गयी। किले में मालदेव के थोड़े से ही सैनिक थे इस लिए बात ही बात में किले पर राणा हमीर का कब्जा हो गया। सुबह की पहली किरन के साथ ही केसरिया ध्वज लहरा दिया गया।
मालदेव को पता लगा तो वह उलटे पैर चित्तौड़ की ओर दौड़ा पर हम्मीर ने उसे रास्ते में ही दबोच लिया। उसके सैनिक भी हम्मीर के साथ हो लिए। अब बिना समय गवाए हम्मीर ने सिंगरौली में बैठे तुगलक पर हमला बोल दिया उसके सैनिक भाग गए और तुगलक पकड़ा गया। तीन महीने तक कारागार में रहने के बाद मेवाड़ के साथ साथ अजमेर व नागौर के इलाके पचास लाख रुपये और सो हाथी देकर अपने प्राण बचाए।
राणा हम्मीर अब पूरे मेवाड़ के महाराणा हो गए। यहीं से मेवाड़ के सिसोदिया वंश का काल खंड शुरू हुआ। राष्ट्र भक्त क्षत्राणी महारानी सोनगिरी ने राष्ट्र - हित में अपने पिता को त्याग कर मेवाड़ को पुन भारत का मुकुट बना दिया।

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