राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़

LOK DEVTA OF RAJASTHAN राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़
कल्ला जी राठौड़
कल्ला जी का जन्म विक्रमी संवत १६०१ को दुर्गाष्टमी को मेड़ता में हुआ, मेड़ता रियासत के राव जयमल के छोटे भाई आस सिंह के पुत्र थे । बचपन मेड़ता में ही बीता । कल्ला जी अपनी कुलदेवी नागणेची जी के बड़े भक्त थे। उनकी आराधना करते हुए योगाभ्यास भी किया । इसी के साथ औषधि विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर वे कुशल चिकित्सक भी हो गए थे । उनके गुरु प्रसिद्ध योगी भैरव नाथ थे । उनकी मूर्ति के चार हाथ होते है । इसके बारे में कहा जाता है कि सन १५६८ में अकबर की सेना ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया था । किले की रसद ख़त्म हो गयी थी । सेनापति जयमल राठौड़ ने केसरिया बाना पहन कर शाका का व क्षत्राणियों ने जौहर का फैसला किया किले का दरवाजा खोल कर चितौड़ सेना मुगलों पर टूट पड़ी ।

सेनापति जयमल राठौड़ के पैरो में गोली लगने से वे घायल हो गए थे । उनको युद्ध करने की बड़ी तीव्र इच्छा थी । किन्तु उठा नहीं जा रहा था । कल्ला जी राठौड़ से उनकी ये हालत देखी नहीं गयी । उन्होंने जयमल को अपने कंधो पर बैठा लिया व उनके दोनों हाथों में तलवार दे दी और स्वयं भी दोनों हाथों में तलवार ले ली । और दुश्मनों पर टूट पड़े । जिधर से भी वे गुजरते दुश्मनों की लाशों का ढेर लग जाता । हाथी पर चढ़े हुए अकबर ने यह नजारा देख तो चकरा गया । उसने भारत के देवी देवताओं के चमत्कारों के बारे में सुन रखा था या खुदा ये भी दो सिर और चार हाथो वाला कोई देव है क्या उसके मन में सोचा ।

काफी देर वीरता पूर्वक युद्ध करने पर कल्लाजी व जयमल जी काफी थक गए मौका देख कर कल्ला जी ने चाचाजी को नीचे जमीन पर उतारा और दवा दारू करने लग गए । तभी एक सैनिक ने पीछे से वार कर उनका मस्तक काट दिया । फिर भी बहुत देर तक मस्तक विहीन धड मुगलों से लड़ता रहा ।

उनके इस पराक्रम के कारण वे राजस्थान के लोक जन में चार हाथ वाले देवता के रूप में प्रसिद्ध हो गए । आज पूरे मेवाड़ ,पश्चिमी मध्य प्रदेश तथा उत्तरी गुजरात के गांवों में उनके मंदिर बने हुए है और मान्यता है । चित्तौड़ में जिस स्थान पर उनका बलिदान हुआ वहां भैरो पोल पर एक छतरी बनी हुई है । वहां हर साल आश्विन शुक्ल नवमी को एक विशाल मेले का आयोजन होता है । कल्ला जी को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है ।

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