47 आईएएस अधिकारीयों वाला राजपूतों का गांव माधो पट्टी(madho patti village of rajputs which has 47 IAS)






--47 IAS अधिकारी वाला राजपूतों का गांव माधो पट्टी--

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आम तौर पर आरक्षण को राजपूत समाज के युवाओं के लिए पैरो की बेड़ियां माना जाता है।लाखों बेरोजगार युवा सिर्फ आरक्षण को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।

पर क्या ये पूरा सच है????

जी नहीं ये पूर्ण सत्य नही है।अगर कुरीतियों का त्याग करके कोई समाज सही दिशा में मेहनत करें तो भले ही कितनी भी बेड़ियां और मुश्किलें हमारा रास्ता रोकें पर हमे हमारी मंजिल को पाने से नही रोक सकती।

अगर युवा मन लगाकर दिलो जान से परिश्रम करें तो कोई भी लक्ष्य असम्भव नही है।

अक्सर राजपूत समाज के युवा अपनी सभी असफलताओं के लिए सिर्फ आरक्षण को जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि उनमे से कई अपना लक्ष्य पाने के लिए कोई परिश्रम ही नही करते।

वो जरूर पढ़ें और प्रेरणा प्राप्त करें।

उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिले में सोलंकी (स्वर्णवान सोनवान शाखा) राजपूत बाहुल्य माधोपट्टी एक ऐसा गांव है जहां से कई आईएएस और अफसर हैं। इस गांव में महज 75 घर हैं, लेकिन यहां के 47 आईएएस अधिकारी विभिन्न विभागों में सेवा दे रहे हैं।

इस एरिया में सोलंकी राजपूतों के 12 गांव हैं और जौनपुर के वर्तमान सांसद के0 पी0 सिंह भी इन्ही 12 गाँवो में से हैं ।



इतना ही नहीं माधोपट्टी की धरती पर पैदा हुए बच्चे इसरो, भाभा, काई मनीला और विश्व बैंक तक में अधिकारी हैं। सिरकोनी विकास खण्ड का यह गांव देश की अंगूठी में नगीने की तरह जगमगा रहा है।



1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की दूसरी रैंक में सलेक्शन क्या हुआ मानो यहां युवा वर्ग को खुद को साबित करने की होड़ लग गयी। आईएएस बनने के बाद इन्दू प्रकाश सिंह फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत रहे।



इस गांव के चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर जो इतिहास रचा है वह आज भी भारत में कीर्तिमान है। इन चारों सगे भाइयों में सबसे पहले 1955 में आईएएस की परीक्षा में 13वीं रैंक प्राप्त करने वाले विनय कुमार सिंह का चयन हुआ। विनय सिंह बिहार के प्रमुख सचिव पद तक पहुंचे।



सन् 1964 में उनके दो सगे भाई क्षत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह एक साथ आईएएस अधिकारी बने। क्षत्रपाल सिंह तमिलनाडु के प्रमुख सचिव रहे।



विनय सिंह के चौथे भाई शशिकांत सिंह 1968 आईएएस अधिकारी बने। इनके परिवार में आईएएस बनने का सिलसिला यहीं नहीं थमा। 2002 में शशिकांत के बेटे यशस्वी न केवल आईएएस बने बल्कि इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल की। इस कुनबे का रिकॉर्ड आज तक कायम है।



इसके अलावा इस गांव की आशा सिंह 1980, उषा सिंह 1982, कुवंर चद्रमौल सिंह 1983 और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983, अमिताभ पुत्र इन्दू प्रकाश सिंह 1994 आईपीएएस, उनकी पत्नी सरिता सिंह ने 1994 में आईपीएस भारत की सर्व प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में चयनित होकर इस गांव मान और बढ़ाया।



राज्य सिविल सेवा अधिकारियों का तो यहां पूरी फौज है। इस गांव के राजमूर्ति सिंह, विद्याप्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह पीसीएस, महेन्द्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह व उनकी पत्नी पारूल सिंह, रीतू सिंह, अशोक कुमार प्रजापति, प्रकाश सिंह, राजीव सिंह, संजीव सिंह, आनंद सिंह, विशाल सिंह, व उनके भाई विकास सिंह, वेदप्रकाश सिंह, नीरज सिंह पीसीएस अधिकारी बने चुके थे।



अभी हाल ही 2013 के आये परीक्षा परिणाम इस गांव की बहू शिवानी सिंह ने पीसीएस परीक्षा पास करके इस कारवां को आगे बढ़ाया है।



इस गांव के अन्मजेय सिंह विश्व बैंक मनीला में, डॉक्टर निरू सिंह, लालेन्द्र प्रताप सिंह वैज्ञानिक के रूप में भाभा इंस्टीट्यूट तो ज्ञानू मिश्रा इसरो में सेवाएं दे रहे हैं। यहीं के रहने वाले देवनाथ सिंह गुजरात में सूचना निदेशक के पद पर तैनात हैं।

संदर्भ----

1- http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/09/47-madho-patti-village-of-rajputs-which.html?m=1

2-http://khabarnawees.com/75-घर-का-गांव-और-47-आईएएस/

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