सतीत्व की अनूठी मिशाल रानी पद्मिनी और गोरा बादल की वीरता








🚩चित्तौड़ की महारानी पद्मनी 


त्याग,सतीत्व,प्रेरणा,जौहर और वीरता की अनुपम मिशाल ....





समय 13वीं ईस्वी जब चित्तौड़गढ़ लगातार तुर्को के हमले झेल रहा था बाप्पा रावल के वंशजो ने हिंदुस्तान को लगातार तुर्को और मुस्लिम आक्रांताओ को रोके रखा


चित्तोड़ के रावल समर सिंह के बाद उनके बेटे रतन सिंह का अधिकार हुआ उनका विवाह रानी पद्धमणि से हुयी जो जालोर के चौहान वंश से थी (कुछ उन्हें सिंहल द्विव कुछ जैसलमेर के पूंगल की भाटी रानी भी बताते है) उस वक़्त जालोरऔर मेवाड़ की कीर्ति पुरे भारत में थे रतन सिंह जी की पत्नी पद्मनी अत्यंत सुन्दर थी इसी वजह से उनकी ख्याति दूर दूर फ़ैल गयी


इसी वजह दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन ख़िलजी रानी पद्मनी की और आकर्षित होकर रानी को पाने की लालसा से चित्तोर चला आया और रानी पद्मणि को अपनी रानी बनाने की ठानी





अल्लाउद्दीन ख़िलजी की सेना ने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिको के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया |





अंत अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने थक हार कर एक योजना बनाई जिसमें अपने दूत को चितौड़ रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि "हम आपसे संधि करना चाहते है अगर आप एक बार रानी का चेहरा हमें दिखा दे तो हम यहाँ से दूर चले जायेगे"





इतना सुनते ही रत्नसिंह जी गुस्से में आ गए और युद्ध करने की ठानी पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि " सिर्फ मेरी वजह से व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको और लोगो का रक्त बहाना ठीक नहीं रहेगा " रानी ने रतन सिंह जी को समझाया और सायं से काम लेने को कहा रानी नहीं चाहती थी कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अल्लाउद्दीन की लाखो की सेना के आगे बहुत छोटी थी | 


तभी रानी पद्मनी ने एक सुझाव दिया और रतन सिंह जी को मनाया





अल्लाउद्दीन अच्छी तरह से जनता था की राजपूतो का हराना इतना आसान भी नही और अगर सेना का पड़ाव उठा दिया और उसके सेनिको का मनोबल टूट जायेगा व बदनामी होगी वो अलग इसने मन ही मन एक योजना बनाई





एक निश्चित समाज चित्तौड़ के द्वार खोले गए अल्लाउद्दीन ख़िलजी का स्वागत हुआ और वादे के मुताबिक रानी पद्मनी को देखने के लिए लाया 





किल्ले के हजारो राजपूतो की भोहे तन गयी अल्लाउद्दीन को सामने देख वो आवेश में आ पर राणा जी और रानी के हुकम की पालना अपनी तलवारो को म्यान में रख कर करते गए राजपूत जनाना में किसी भी पुरुष का जाना निषेद था केवल छटे हुए कुछ सगोत्र राजपुत जनाना के बहार सुरक्षा में थे उसके आगे सेना उन्ही आज्ञा से कोई आर पार नही जा सकता था





रानी पद्मनी का महल के कमरे के पीछे एक बड़ा सरोवर था उसमे एक छोटा महल था वाहा अल्लाउद्दीन को बिठाया गया और पानी के दूसरी तरफ रानी पद्मनी महल मे उनके कमरे एक बड़ा काँच/दर्पण लगाया जिसका प्रतिबिम्ब सरोवर के पानी में गिरता रानी के केवल क्षण भर के लिए देखा वही प्रतिबिम्ब पानी में दूसरी तरह से अल्लाउद्दीन ने देखा





रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर अल्लाउद्दीन पागल सा हो गया और उसने अभी रानी को हर हाल में पाने की ठान ली





जब रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिए किले के द्वार तक छोड़ने आये तो अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |


और रानी के पास सन्देश भिजवाया अगर वो उसके हरम में आती है तो वो रतन सिंह जी को छोड़ देंगे


किल्ले में हाहाहाकार मच गया जिसका डर था वही हुआ अब सब कुछ् रानी पर था





पर रानी ने भी अल्लाउद्दीन ख़िलजी को जवाब उसी की भाषा में देना उचित समझा और दूत से सन्देश भिजवाया की "मै आप के साथ आने को तैयार हु पर मेरे साथ 650 दासिया और होगी और पति के अंतिम दर्शन कर आपके सम्मुख उपस्थित हो जाउंगी"








रानी पद्मनी की शर्त मान ली गयी अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा 





इधर किल्ले में रानी पद्मनी ने अपने काका गोरा चौहान व भाई बादल के साथ रणनीति तैयार कर साढ़े छः सौ डोलियाँ तैयार करवाई 





राजपूतो ने इन डोलियों में हथियार बंद राजपूत वीर सैनिक बिठा दिए डोलियों को उठाने के लिए भी कहारों के स्थान पर छांटे हुए वीर सैनिको को कहारों के वेश में लगाया गया





चित्तोड़ के द्वार खोले गए तुर्क सेना निचिंत थी रानी पद्मनी की डोली जिसमे राजपूत वीर बेठे थे वही आगे पीछे की कमान गोरा बादल संभाले हुए थे तुर्क सेना जश्न मना रही थी बिना लड़े जीत का राजपूत जो भेष बदल कर चल रहे थे अजीब सी शांति थी सबके चेहरे पर अल्लाउद्दीन दूर बेठा देख रहा था और अति उत्साहित था


तभी पद्मनी की डोली रतन सिंह जी के दर्शन के लिए रुकी तबी एका एक सिंह गर्जना हुआ वीर गोरा चौहान ने तलवार निकल दी इधर बादल ने हुंकार भरी और 650 डोलियों में भरे हुए राजपूत और 1300 राजपूत जो कहारों के भेष में थे एक दम से तुर्क/यवन की सेना पर टूट पड़े तुर्क कुछ समझ पाते इससे पहले सर्व प्रथम रंतन सिंह जी को कैद से छुड़ाया और एक योजना के तहत उन्हें जल्दी से किल्ले में ले जाया गया तुर्क सेना में अफरा तफरी मच गयी अल्लाउद्दीन भी बोखला गया बहुत से राजपूत लड़ते रहे पर योजना के तहत हजारो की लाशे बिछाकर पुनः किल्ले में आ गए





इस अप्रत्याक्षित हार से तुर्क सेना मायूस हुयी अल्लाउद्दीन बहुत ही लज्जित हुआ अल्लाउदीन में चित्तोड़ विजय करने की ठानी और अपने दूत भेज कर गुजरात अभियान में लगी और सेना बुला ली अब राजपूतो की हार निश्चित थी





7 माह चित्तोड़ को घेरे रखा 


किल्ले से राजपूतो ने 7 माह तुर्को चित्तोड़ में घुसने नही दिया अंत किल्ले में रसद की कमी हो गयी और राजपूतो ने जौहर और शाका की ठानी





राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर जौहर और शाका करने का निश्चय किया | जौहर के लिए वहा मैदान में रानी पद्मिनी के नेतृत्व में 23000 राजपूत रमणियों ने विवाह के जोडे में अपने देवी देवताओ का स्मरण कर सतीत्व और धर्म की रक्षा के जौहर चिता में प्रवेश किया | थोडी ही देर में देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया | 


जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी और उसकी सेना भी सोच में पड़ गयी





| महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर 30000 राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे शेरो की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े भयंकर युद्ध हुआ 





रानी पद्मनी के काका गोरा और उसके भाई बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया -





बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ |


सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ ||





इस प्रकार सात माह के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय के बाद उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके | 





रत्नसिंह युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी राजपूत नारियों की कुल परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |

संदर्भ---

1-वीर विनोद

2-http://www.gyandarpan.com/2011/03/rani-padmini.html?m=1



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