गणगौर पर्व--GANGAUR FESTIVAL ,THE INTEGRAL PART OF RAJPUTANA CULTURE













गणगौर पर्व-



मित्रो राजपूत समाज अपनी विशेष रीती रिवाज और संस्कृति के लिये जाना जाता है। राजपूत हिन्दू समाज के सिरमौर है इसलिये बाकी जातीया भी राजपूत संस्कृति को आदर्श के रूप में देखती हैँ। राजपूतो में साल भर में कई तरह के त्यौहार मनाते हैँ और राजपूतो में इनको विशेष तरीको और शानो शौकत के साथ मनाया जाता है। ऐसे ही एक गणगौर नामक त्यौहार के महत्व से आपका परिचय आज कराएंगे जो राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरयाणा, गुजरात के कई क्षेत्रो में बहुत लोकप्रिय है लेकिन राजपूत स्त्रियों के लिये इसका विशेष महत्व है और राजपूत समाज में यह पर्व बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।


गणगौर एक प्राचीन त्यौहार है जिसमे शिव जी के अवतार के रूप में गण(ईसर) और पार्वती के अवतार के रूप में गौरा माता का पूजन किया जाता है। यह होली के तीन बाद से शुरू होता है और 18 दिन तक चलता है जिसमे महिलाये अपने यहाँ गणगौर और ईसार की पूजा करती है।







मान्यता है कि प्राचीन समय में पार्वती जी ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी का शिव जी से विवाह हो गया। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है जो कि होली के दूसरे दिन से शुरू होकर अठारह दिनों तक चलता है। प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके कन्याएँ व महिलाएँ, शहर या ग्राम से बाहर सरोवर अथवा नदियों तक जाती हैं, जहाँ से शुद्ध जल और उपवनों से हरी घास-दूब तथा रंग-बिरंगे पुष्प लाकर गौरा देवी के गीत गाते हुए समूह में अपने घरों को लौटती हैं और घर आकर सब मिलकर गौराजी की अर्चना और पूजा आराधना करती हैं। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है। यह पर्व इन क्षेत्रो में विशेषकर राजपूतो में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है और गणगौर का यहाँ के राजपूत समाज में अपना महत्व है। बहुत से स्थानो में मेले लगते है और काम काज बंद रहता है।







पुराने समय में राजपूत राजघरानो ,ठिकानो ,रावलो से गणगौर की सवारी निकली जातीथी जो की अपने आप में एक भव्य आयोजन होता था। सभी समाज के लोगो को इस सवारी का इन्तजार रहता था और शाही गणगौर के हवेली से निकलते ही सभी लोग उस सवारी का हिस्सा बन जाते थे। राजपूत औरते सिर्फ जनाना ड्योढ़ी तक गणगौर छोड़ने आती थी। पहले राजपरिवारों की महिलाएं सिंजारा मनाती हैं और दूसरे दिन गणगौर माता की चांदी की पालकी तैयार की जाती है। राजपरिवार की महिलाएं गणगौर माता की पूजा अर्चना कर जनानी ड्योढी से पालकी को विदा करती हैं। रियासत काल में गणगौर के दिन ठिकानेदारों की औरते(ठाकुरानिया) राजमहलों में पूजा कर घूमर गणगौर त्यौहार मानती थी राजघरानों में रानियाँ और राजकुमारियाँ ,बाईसा सभी प्रतिदिन गौर की पूजा करती हैं।









रियासत काल में गणगौर में राजसी ठाट बाट देखने को मिलते थे और विभिन्न समाज के लोग दूर दूर से बड़े ठिकानो और राजघरानो में आया करते थे। गणगौर के अवसर पर मंदिरों में विशेष भोग व पूजा के कार्यक्रम सम्पन्न होते है महूर्त पर पूजा होती है और सवारी निकली जाती है।


समय के साथ ज्यादातर समाज अपनी गणगौर अलग निकलने लगे है। जयपुर की गणगौर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। हाथी ,घोड़े और भारी लवाजमे के साथ ये निकलती है। वही मेवाड़ राजघराने की गणगौर भी काफी प्रसिद्ध है। .... पहले कोई राजपूत राजा युद्ध हार जाता था तो दूसरे राजा उनकी उपाधि,राज झंडा, राज चिन्ह के साथ गणगौर भी छीन कर ले जाते थे जो अपने आप में अपनी कीर्ति बखान करती थी। मेवाड़ राज्य की गणगौर मालवा के सोनिगरा चौहानो के ठिकाने"नामली" में है।







अगर आप गणगौर त्यौहार के समय राजस्थान में हैं तो सभी लड़कियां और विवाहित स्त्रियाँ गणगौर की पूजा के वक़्त बहुत से गीत गाती सुनाई देंगी। राजस्थान में गणगौर का त्यौहार बहुत मान्यता रखता है। वसंत उत्सव के आते ही होली के रंग के साथ ही गणगौर पूजा का रंग भी राजस्थान की हवा में फैला दिखाई देता है।


राजस्थान में इस संदर्भ के कुछ गीत है-


""भँवर म्हाने खेलण दो गणगौर""


""औढो कोढो वीरा रांवला रे ,राई चन्दन को रूख ""


""ओ म्हारी घूमर छे नखराळी ऐ माँ घूमर रमवा म्हें जास्याँ ओ राजरी घूमर रमवाम्हें जास्याँ""


""म्हारा दादोसा रे जी मांडी गणगौर म्हारा काकोसा रे मांडी गणगौर "











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