एक मन्दिर जहाँ अंग्रेजों के सिर को काटकर माँ भवानी के चरणों में चढ़ाता था वीर राजपूत बंधू सिंह श्रीनेत(BANDHU SINGH SHRINET_THE GREAT RAJPUT FREEDOM FIGHTER)










स्वतंत्रता संग्राम में राजपूतों का योगदान----


====गोरखपुर जिले मे माता तरकुल्हा देवी का मंदिर जहां अंग्रेजो के सिर को काटकर मां भवानी के चरणो मे चढाया जाता था ===

मित्रो आज हम बात कर रहे है

#बाबू_बंधू_सिंह जी की जिनके प्राक्रम और प्रताप का गुणगान आज भी गोरखपुर मे किया जाता है। बाबू बंधू सिंह गोरखपुर में डुमरी रियासत के थे। ये श्रीनेत वंशी राजपूत थे।।।


गोरखपुर में चौरा चोरी गांव से कुछ ही दूरी पर "माता तरकुल्हा देवी" का पवित्र मंदिर है। इस इलाके में जंगल हुआ करता था जिसमे बाबू बंधू सिंह रहा करते थे उनकी रियासत डुमरी वहीँ थी,और अपनी इष्ट देवी तरकुलहा देवी की उपासना में लीन रहते थे।
बात 1857 से पहले की है। बाबू बंधू सिंह के दिल में बचपन से ही अंग्रेजो के खिलाफ बहुत रोष था। वो गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे इसलिए जब भी मौका मिलता वो अंग्रेजो को मार कर, सर काट कर माता के चरणो मे अर्पित कर देते। दिन प्रतिदिन अंग्रेज अफसरों को गायब होते हुए देखकर अंग्रेज बहुत चिंतित हुए और अपनी बडी फौज के साथ उन पर आक्रमण कर दिया ! बाबू बंधू सिंह जी बहुत ही साहस के साथ अंग्रेजो के साथ लडते रहे पर कभी भी अंग्रेजो के हाथ नही आए। अंत मे एक व्यापारी मजीठिया सरदार की मुखबिरी(ये मजीठिया परिवार के मुखबिरी के चलते अंग्रेजो के पकड़ में आये।बाद में इनकी सारी प्रॉपर्टी इनाम के तौर पर उसको मिली) के कारण अंग्रेजो ने राजा बंधू सिंह  ठाकुर को जिंदा पकड लिया और उनको अनेको यातनाएं दी। कुछ समय बाद उनको फांसी पर चढाने का आदेश दिया गया। गोरखपुर के अली नगर चौराहे पर उनको सार्वजानिक रूप से फ़ासी पर लटकाया गया। लेकिन लगातार 6 बार फ़ासी पर चढाने के बाद भी अंग्रेज सफल नही हुए। अंत मे बाबू साहेब ने तरकुलहा माता का ध्यान करते हुए माँ से उन्हें जाने देने का अनुरोध किया। सातवी बार में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये -!!






कहते है बाबू साहब को फांसी लगते ही देवी स्थान पर बरसो से खडे तरकुल (नारियल की एक प्रजाति) के बृक्ष 









का उपरी सिरा टूट कर अलग जा गिरा व उसमे से रक्त की धार फूट पडी ! मां का अपने भक्त पर ऐसा स्नेह 









कम ही देखने सुनने को मिलता है !





आज भी बाबू बंधू सिंह की स्मृति मे इस मंदिर मे एक स्मारक भी बना हुआ है और आज भी यहां बलि प्रथा चल रही है। तरकुलहा माँ के चरणो मे आज भी बकरे की बलि दी जाती है जिसको बाद मे मिट्टी की हांडियो मे बनाकर प्रसाद के रूप मे सभी भक्तो मे बांटा जाता है। देश में इकलौता मंदिर है जहाँ प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता है।।

भड़ भवानी रो भगत , बंधू सिंह सुजाण ।
फिरंगी माथा बाढ़ने , देतो जगदम्ब जळ पाण ।।




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