UNIQUE SOLDIER OF LOHARU STATE





क्षत्रियों की संगत में कुत्ते भी सिंह बन जाते हैँ


















महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक,शुभरक और हाथी रामप्रसाद के बारे में सब जानते हैं लेकिन इस बहादुर कुत्ते के बारे में बहुत कम लोगो को पता होगा....

हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे कुत्ते की कहानी जिसने जंग के मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे।



यूं तो कुत्ते वफादारी के लिये जाने जाते हैँ और आपने कई तरह के कुत्तों की वफादारी की कहानी सुनी होगी लेकिन इस कुत्ते ने वो काम किया जिसकी वजह से इसका नाम इतिहास में पन्नों पर दर्ज हो गया है।

यह बात है लोहारू रियासत की !!!




-----लोहारु रियासत------



वर्तमान में लोहारू जिला हरियाणा में भिवानी का एक उपमंडल मुख्यालय है। जनश्रुति के अनुसार काफी समय पूर्व इस क्षेत्र में काफी संख्या में लोहार निवास करते थे। उस समय इसे लोहारगढ़ कहा जाता था जो बाद में लोहारू हो गया। लोहारू में कई प्राचीन भवन, किले व मंदिर आदि भी हैं। लोहारू में एक समय शेखावत राजपूतो का राज था और यह शेखावटी का हिस्सा होता था, बाद में यह अलवर रियासत का हिस्सा भी रहा। लोहारू में शेखावत राजपूत राज्य की स्थापना और किले का निर्माण 1570 में ठाकुर अर्जुन सिंह ने करवाया।


तत्कालीन लोहारू रियासत के अंतर्गत बावन गांव आते थे अत: इसे बावनी रियासत भी कहा जाता था। 





रणक्षेत्र में एक कुत्ते ने छुड़ा दिए थे मुगलों के छक्के, जानिए पूरी दास्तां""







सन 1671 में लोहारू रियासत पर ठाकुर मदन सिंह का राज था !!! उनके दो बेटे महासिंह व नौराबाजी थे , महाराज का एक वफादार था जिसका नाम बख्तावर सिंह था !!! बख्तावर सिंह के पास एक कुत्ता था जिसे वो अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था !!! बताया जाता है कि उस कुत्ते की कद काठी किसी कटड़े जैसी थी और बाल बड़े बड़े।’ वह ठाकुर मदन सिंह और बख्तावर सिंह का साथ एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता था।





हिसार गैजेटियर में दर्ज विवरण के अनुसार, सन् 1671 में ठाकुर मदन सिंह ने बादशाह औरंगजेब को राजस्व देने से इनकार कर दिया, जिससे नाराज होकर बादशाह औरंगजेब ने हिसार गवर्नर अलफू खान को लोहारू पर हमला करने के आदेश दिए !!! फिर शुरू हुई एक भीषण जंग , इस जंग में दोनों ही तरफ से बहुत जन हानि हुई !!!





ठाकुर मदन सिंह के दोनों पुत्र इस जंग में शहीद हो गए। पर बख्तावर पूरी बहादुरी से मैदान में डटे रहे !!! उनके साथ उनका वफादार कुत्ता भी युद्धभूमि में ही था। जैसे ही कोई मुग़ल सैनिक बख्तावर कि तलवार से जख्मी होकर निचे गिरता, कुत्ता उसकी गर्दन दबोचकर मार देता। इस तरह उसने खुद 28 मुग़ल सैनिकों के प्राण लिए। 





कुत्ते को ऐसा करता देखकर एक साथ कई मुग़ल सैनिकों ने कुत्ते पर हमला किया !!! अंततः कई वार सहने के बाद कुत्ता वीरगति को प्राप्त हुआ !!! उसके कुछ देर बाद बख्तावर भी रणभूमि में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ !!! हालाकि तब तक मुग़ल सैनिकों कि पराजय तय हो चुकी थी और अंततः ठाकुर मदन सिंह के सामने अलफू खान को मैदान छोड़कर भागना पडा !!!





कुत्ते की बहादुरी की कहानी दूर दूर तक फ़ैल गई। लड़ाई के बाद ठाकुर मदन सिंह ने उस जगह समाधी और गुंबद का निर्माण कराया जहां कुत्ते की मौत हुई थी।





बाद में इसी गुंबद से कुछ दूरी पर बख्तावर सिंह की पत्नी भी उनकी चिता पर सती हो गईं थी। वहां पर उनकी पत्नी की याद में रानी सती मंदिर बनवाया गया जो आज भी मौजूद है। कुत्ते की समाधी और सती मंदिर आज भी आकर्षण और श्रद्धा के केंद्र हैँ।




(तस्वीर- बहादुर कुत्ते की याद में पुराने किले से कुछ दूरी पर बनाई गई गुंबद व् रानी सती माता मन्दिर, कमेंट्स में। )।



संदर्भ--हिसार गजेटियर,शेखर चौहान जी,दैनिक ट्रिब्यून।

Comments

Popular posts from this blog

भोजनान्ते विषम वारि

राजपूत वंशावली

क्षत्रिय राजपूत राजाओं की वंशावली