BATTLE OF MAONDA AND MANDHOLI





=== माऊंडा मंडोली का इतिहासिक युद्ध ===


भारत वर्ष की भूमि वीरों की भूमि है यहाँ का कण कण क्षत्रियों के रक्त से सींचा हुआ है। यह भूमि गवाह है ऐसे सैकड़ो हजारों युद्धों की जिनमें हिन्दू क्षत्रियों ने अपने मान सम्मान और प्रजा के हितों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुतियाँ दी।



आज हम इतिहास के पन्नों से ऐसे ही युद्ध की एक गाथा को दोहरा रहें है जो राजस्थान में सीकर जिले के नीम का थाना शहर के पास स्थित माऊंडा और मंडौली गाँवों में सन् 1767 में लड़ा गया था।



माऊंडा मंडोली का युद्ध भरतपुर के राजा जवाहर सिंह और जयपुर के सूयवंशी क्षत्रिय कछवाहा राजा सवाई माधो सिंह प्रथम के बीच सन 1767 में लड़ा गया जिसमे भरतपुर की फ़ौज और जवाहर सिंह को मूहँ की खानी पड़ी और रण छोड़ कर भागना पड़ा।



इसके बाद कुशवाहों द्वारा भरतपुर को रोंदने का सिलसिला सिर्फ माऊंडा मंडोली तक ही सीमित नहीं रहा। राजा सवाई माधो सिंह के नेतृत्व में जयपुर ने 29 फरवरी 1768 सिर्फ 15000 राजपूतों की फ़ौज के साथ भरतपुर शहर पर कब्ज़ा कर जाट राज जवाहर सिंह को दुबारा हराया। भरतपुर की सेंध के दौरान जयपुर ने जाट राज जवाहर सिंह के सेना पति दान शाह को भी मार गिराया जिसके पश्चात जवाहर सिंह को भाग कर सिखों के यहाँ शरण लेनी पड़ी और सात लाख रुपये चूका कर 20000 सिखों की सेना की मदद से भरतपुर पर दुबारा कब्जे के लिए जयपुर से लड़ना पड़ा।




=== माऊंडा मंडोली युद्ध: पृष्टभूमि ===




तिथि : 6 नवंबर 1767

स्थान : पुष्कर



उत्तर भारत में मराठों की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए जोधपुर के राठौड़ वंश और भरतपुर के जाट ( जादौन वंश) वंश ने पुष्कर में एकजुट होकर लड़ने की रणनीति बनाई।



इस मुलाकात में जोधपुर और भरतपुर राज घराने के सदस्य एक ही कालीन पर समान ऊंचाई पर बैठे और आपसी भाईचारा बढ़ाने की शुरुआत की। इसी बीच पुष्कर की सभा में शामिल होने का न्योता जयपुर के कछवाहा वंश के राजा महाराज सवाई माधो सिंह जी प्रथम को भी भेजा गया। भरतपुर के साथ एक ही कालीन पर बैठ भाईचारा बढ़ाने की बात जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह को अपनी शान के खिलाफ तथा नागवांरा लगी। सवाई माधो सिंह इस वाक्य से इतने भड़क गए के उन्होंने तुरन्त बिजय सिंह राठौड़ को पुष्कर अपना सन्देश भिजवाते हुए लिखा कि " बिजय सिंह जी आपने जयपुर राज घराने के नौकरों को अपने साथ बिठा कर उनसे भाईचारे की बातें कर के समग्र राठौड़ वंश और अपने पूर्वजों का मान गिरा दिया।"



यह सुनकर जाट राज जवाहर सिंह आग बबूला हो उठा और उसने भरतपुर लौटते समय जयपुर राज्य के गाँवों में लूट पात और जयपुर की प्रजा से बदसलुखी करनी शुरू कर दी।







=== जाट रानी किशोरी की धूर्तता ===



जाट रानी किशोरी भरतपुर के राजा सूरजमल की दूसरी पत्नी तथा जवाहर सिंह की सौतेली माँ थी। रानी किशोरी जानती थी के अगर जवाहर सिंह को उकसाया जाए और जयपुर के साथ भीड़वा दिया जाए तो भरतपुर की गद्दी उसके मन चाहे पुत्र को मिल सकती थी। रानी किशोरी ने इस कुकर्म को करने के लिए एक युक्ति निकालते हुए जवाहर सिंह के आगे पुष्कर में राजपूत महिलाओं के साथ सरोवर में स्नान की ख्वाइश रखी वह जानती थी इससे जयपुर राजघराने के राजपूत जरूर भड़केंगे जो भरतपुर राज परिवार को अपना खादिम मानते थे और जिनकी शान में भरतपुर राजपरिवार सदा सर झुका कर खड़ा रहा है। और हुआ भी ऐसा ही राठौड़ो के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा कर जैसे तैसे रानी किशोरी ने स्नान तो कर लिया परंतु यह करतूत आने वाले समय में भरतपुर और जवाहर सिंह को बहोत भारी पड़ी।



=== राजपूतों पर रॉब जमाने के लिए पुष्कर यात्रा ===



18 वीं शताब्दी आते आते आपसी युद्ध , मराठा सेना के उत्तर में छापामार युद्धों और बाहरी ताकतों के लगातार हमलों से झुझने के कारण राजस्थान और उत्तर भारत के राजपूत कमजोर होते जा रहे थे। उधर दिल्ली में बहादुर शाह जफर के नेतृत्व के बाद मुग़ल सत्ता बहोत कमजोर हो चली थी। धीरे धीरे उत्तर में मराठा शक्ति भी शीन होने लगी इसी चीज का फायदा उठा कर सूरजमल और उसका बेटा जवाहर सिंह ने ब्रज चम्बल और दक्षिण हरयाणा के एक बड़े इलाके पर कब्ज़ा कर लिया। इस सफलता से मिले जोश और होंसले से उत्तेजित हो कर भरतपुर के जाट जो कभी मुग़लों और जयपुर राजघराने के चाटुकार भर थे अपना दम ख़म दिखाने के लिए  करीब 50 हजार सैनिकों की फ़ौज लेकर जिसमेंउ सके साथ समरु के नेतृत्व में फ्रेंच टुकड़ी,भाड़े पर सिक्ख टुकड़ी, गुज्जर डकैत,और भारी तोपखाना बन्दुके थी लेकर पुष्कर की और बढ़ा।



इस यात्रा का मकसद पुष्कर यात्रा के नाम पर जयपुर राज्य और राजपूतो को नीचा दिखाना था|





=== माउंडा के निर्णायक युद्ध का वर्णन ===



अपने अपार बल, तोपखाने और आधुनिक शस्त्रों से लैस सेना के साथ जाट राजा जवाहर सिंह लगभग अपने ही राज्य की सीमा में पहुंच गया था, जब वो नारनौल से केवल 23 मील दक्षिण-पश्चिम में माउंडा मंडोली से गुजर रहा था। तभी तेजी से पीछा कर रही कछवाह सेना के घुड़ स्वरों ने जाटों की सेना को धर दबोचा।



कछवाहों ने 14 नवम्बर 1967 को जाटों पर पहला हमला बोला। कछवाह घुड़सवारों का पहले हमला जाटों द्वारा नकाम कर दिया क्योकि इस समय तक पूरी कछवाह सेना और तोप एवं बंदूक माउंडा पहुँच नहीं पाई थी। इस कामयाबी का फायदा उठाते हुए जाट सेना ने युद्ध के मैदान से आगे भागने की सोची परंतु जयपुर के घुड़सवारों ने उन्हें फिर से धर दबोचा और जाटों को दुबारा मुड़ कर मजबूरन युद्ध करना पड़ा।



जाट सेना के तोप के गोलों और बन्दूको की गोलियों का मजबूती से सामना करने के बाद जयपुर के घुड़सवारों ने अपनी तलवारों के साथ जाटों पर दुबारा हमला बोला। दुश्मन जो अपनी हार का आंकलन कर के मात्र चन्द सैकड़ो की तादाद वाली सेना से पहले ही आक्रमण के बाद भाग रहा था वह कछवाहों की तलवारों के आगे दुबारा टिक नहीं पाया।



चारो तरफ जाट सेना में हाहाकार मच गया उधर चन्द कछवाहा घुड़सवार दुश्मन के सैकड़ों सर धड़ से अलग कर अपने राज्य की पावन मिट्टी पर झुकाते रहे। इसी बीच जाट सेना दुबारा भागना शुरू किया और ऐसे भागे के पीछे अपने तोप बन्दुक और स्वयं महाराजा जवाहर सिंह को दुश्मन की दया के मोहताजगी छोड़ आये। राजा जवाहर सिंह की इज्जत इसी जाट सेना में मजूद फ़्रांसिसी सेना द्वारा प्रशिक्षित दो वीरों समरू और मेढक ने बचाई और किसी तरह रात में  अँधेरे तक लड़ते हुए जाट राजा जवाहर सिंह को युद्ध के मैदान से भगा कर सुरक्षित भरतपुर ले गए। राजा जवाहर सिंह डर के मारे भाग गया था परन्तु अपने पीछे अपनी ७० तरह की बंदूकें , तम्बू  एवं सामान जिसमे की उनका शाही छाता भी था छोड़ गया।  कुल मिला के दोनों तरफ का नुक्सान करीब ५००० आदमी थे। इस युद्ध में करीब २००० राजपूत योद्धा वीर गति को प्राप्त हुए, क्षत्रिय सेना को यह नुकसान केवल उस शुरुआती गोलाबारी के कारन हुआ जिसके विरुद्ध वो निहत्ते दृढ़ता से लड़ते रहे और अपने अहम योद्धा गवां दिए। उस दिन जयपुर में ऐसा कोई क्षत्रिय परिवार न रहा होगा जिनका बीटा वीर गति को प्राप्त न हुआ हो। दिलीप सिंह जो की जयपुर के सेनापति थे अपनी तीन पीढ़ियों के साथ युद्ध में उतरे थे तथा इनके परिवार ने तीनों पीढ़ियां युद्ध में अपने राज्य शौर्य मान और रजपूती शान  के लिए न्योछावर कर दी। यह युद्ध इतना भयावह साबित हुआ के जयपुर में केवल १० साल के बालक ही क्षत्रिय वीर बच गए थे।                                                                                                                                                                                  



    === प्रताप सिंह कछवाहा का योगदान ===



प्रताप सिंह कछवाहा जयपुर राजघराने का एक सामंत था। युद्ध से जयपुर के कछवाहा शाशकों से किसी बात पर उसका विवाद हो गया था जिस कारण वह बाग़ी होकर भरतपुर के साथ जा मिला। कुछ समय पश्चात प्रताप सिंह कछवाहा को यह ज्ञात हुआ के भरतपुर और जयपुर के बीच में युद्ध छिड़ गया है तो उसका क्षत्रिय रक्त खोल उठा और अपने वंश का मान बचाने के लिए भरतपुर से बाग़ी हो कर इन्हीं के खिलाफ युद्ध में जयपुर का साथ देने के लिए निकल पड़ा।                                                                                            





   ==== युद्ध में लड़े कुछ जांबाजों के नाम ====                                                                                                                      

जयपुर की तरफ लगभग सभी कच्छावा और शेखावत ठिकाना प्रतिनिधित्व किया था।

मंढोली और मओंडा के ठाकुर - तंवर राजपूत

पाटन के राव - तंवर राजपूत

डुण्डलोद के हनुमंत सिंह - कच्छावा

नवलगढ़ के नवल सिंह - कच्छावा

डुला के अमर सिंह जी राजावत

लसाड्या के नवल सिंह राजावत

चवल्डीङा के डुला  सिंह कच्छावा - रायपुर

रसूलपुरा के शंभू सिंह कच्छावा

मंगलवाडा के सांवल सिंह कच्छावा

तेहतरा के आवाज सिंह कच्छावा    







                      =====References====

1 ^ Tanwar Rajvansh Ka Itihas By Dr. Mahendra Singh Tanwar khetasa                                                                    2^ Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. James Todd 332713

3^ The Rajputana gazetteers - 1880

4^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 256

5^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 255

6^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 255

7^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 256

8^ Sir William Wilson Hunter,Imperial gazetteer of India - Vol V 1908, page 257

9^ R.K. Gupta, S.R. Bakshi, Studies In Indian History: Rajasthan Through The Ages The Heritage Of ..., Page 19

10^ R.K. Gupta, S.R. Bakshi, Studies In Indian History: Rajasthan Through The Ages The Heritage Of ..., Page 19

Jump up ^ Dr RK Gupta & Dr SR Bakshi:Rajasthan Through the Ages Vol 4 Page 207

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