1857 स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत करने वाले राजपूत Rajputs who started freedom struggle of 1857
1857 का स्वाधीनता संग्राम प्रमुखतः एक सैनिक विद्रोह था. सैनिको ने ही इस विद्रोह की शुरुआत की थी और बढ़चढ़कर इसमें भाग लिया था. अपितु सैनिक ही इस विद्रोह की रीड थे और गंभीरता से अंग्रेज हुकूमत को उखाड़ने के लिए प्रयासरत थे. अधिकतर सैनिको ने विद्रोह कर अपने घर जाने के बजाए(जो की वो आसानी से कर सकते थे और ज़िंदा बचे रहते) अंत तक युद्ध करना स्वीकार किया और लड़ते हुए शहीद हुए.
कई जाती समूहों ने इस विद्रोह में सिर्फ लूटपाट की जिन्हें खुद विद्रोही सैनिको ने सजाए भी दी और कइयो ने व्यक्तिगत कारणों से विद्रोह किया और उनके नाम इतिहास में क्रांतिकारियों में अमर हो गए. लेकिन जिन लाखो सैनिको ने बिना किसी प्रलोभन के निस्वार्थ भाव और निडरता से अभावो में भी अंग्रेजो से युद्ध किया उनमे से बहुत ही कम सैनिको के नाम लोगो को पता है. लाखो सैनिक अपने घरो से दूर गुमनाम मौत मरे जिनकी लाशो को भी उचित सम्मान ना मिला. हजारो सैनिको ने लड़ते हुए वीरता की अद्भुत मिसाले पेश करी लेकिन इनके नाम पते कभी इतिहास में जगह नही बना पाए.
इन सैनिको में अधिकतर उत्तर प्रदेश विशेषकर अवध, बिहार के भोजपुर क्षेत्र के राजपूत, ब्राह्मण और मुसलमान थे. बगावत करने वाले सैनिको में सबसे बड़ा धड़ा अवध के बैसवाड़ा, पूर्वांचल, बिहार के शाहाबाद क्षेत्र के राजपूतो का था. 1857 में सबसे भीषण लड़ाई इन्ही क्षेत्रो में लड़ी गई थी. यहा का हर एक सक्षम राजपूत हथियार उठाए हुए था. यहा स्वाधीनता संग्राम का वास्तविक रूप देखने को मिला. अंग्रेजो को विद्रोह कुचलने में सबसे ज्यादा मुश्किलें इन्ही क्षेत्रो में आई. इसका कारण यहा से बड़ी संख्या में भर्ती होने वाले सैनिको का बगावत करना था. जब सैनिको ने बगावत करी तो उनके गाँव में रहने वाले भाई बांधवों ने भी हथियार उठा लिए. वीर कुंवर सिंह जी और राणा बेनी माधव सिंह की सेना में अधिकतर लोग इन क्षेत्रो के बागी सैनिक थे. जगह जगह जाकर इन सैनिको ने क्रांति की अलख जगाई. राजाओ, जमींदारों को संग्राम में कूदने के लिए प्रेरित किया और उनको नेता बनाकर उनकी सेना में शामिल हुए. अंग्रेजो को सबसे भीषण प्रतिरोध इन्ही सैनिको से युद्धों में झेलना पड़ा जो हार निश्चित होने के बाद भी हथियार डालने की बजाए मरते दम तक लड़े. दिल्ली की घेराबंदी इसका उदाहरण है जिसमे सुदूर पूर्वांचल से आए सैनिक हार निश्चित होने के बाद भी अंतिम सांस तक लड़े. इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरयाणा से भर्ती होने वालो में रांघढ़(मुस्लिम राजपूत) सबसे प्रमुख थे. इन क्षेत्रो में इन मुस्लिम राजपूतो ने ही सबसे मुखर विद्रोह किया था.
इन लाखो सैनिको के नाम इतिहास में गुम हो गए. इनके कुछ नेताओ के नाम पता है लेकिन उनका भी पता ठिकाना नही पता. हर साल हर जिले कसबे में सैकड़ो क्रांतिकारियों का नाम लेकर उन्हें श्रद्धांजली दी जाती है लेकिन 1857 के इन वास्तविक नायको को आज तक किसी ने याद नही किया क्यूकी वो सभी गुमनाम शहीद थे. लेकिन संयोग से मेरठ में जिन सैनिको ने सर्वप्रथम विद्रोह कर चिंगारी भड़काई थी, उनके नाम इतिहास में दर्ज हैं.
24 अप्रेल 1857 को मेरठ में 3 लाइट कैवेलरी के 85 जवानों ने परेड में चर्बीयुक्त कारतूसो का इस्तमाल करने से मना कर दिया. बार बार दबाव डालने के बाद भी आज्ञा की अवहेलना करने पर इन जवानो को तुरंत डिसमिस कर के जेल में डाल दिया गया और इनपर कोर्ट मार्शल की कार्यवाई शुरू की गई जिसके बाद इन्हें कठोर सजा दी जानी थी. इनके इस कृत्य से इनके बाकी साथियो में हलचल मच गई और उन्होंने भी अपनी बारी आने पर कारतूस लेने से इनकार कर दिया. अंत में 10 मई 1857 की शाम को भारतीय सैनिको का आक्रोश का लावा फूट गया और 20 नेटिव इन्फेंट्री और 11 नेटिव इन्फेंट्री के जवानों ने अपने अफसरों पर गोली चलाकर खुले विद्रोह की शुरुआत कर दी. 3 लाइट कैवेलरी के जवान भी अपने घोड़ो पर सवार होकर जेल से अपने साथियो को आजाद कराने के लिए निकल पड़े. वहा शहर कोतवाल ने डर कर कोई विरोध नही किया और सैनिको को चाबिया पकड़ा दी. सैनिको ने अपने 85 साथियो के साथ जेल के बाकी 1200 कैदी भी आजाद करा लिए. 11 मई को इन क्रांतिकारी सैनिको ने दिल्ली पहुचने के बाद 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर मुग़ल सम्राट बहादुरशाह द्वितीय को सम्राट घोषित कर दिया और उन्हें अंग्रेजो के विरुद्ध बगावत करने के लिए बाध्य किया. इसकी सूचना मिलते ही शीघ्र ही विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार तथा झांसी में भी फैल गया. 3 लाइट कैवेलरी के जवानों ने अकेले दम पर एक सैन्य विद्रोह को स्वाधीनता आन्दोलन में तब्दील कर दिया.
इस 3 लाइट कैवेलरी में अधिकतर उत्तर प्रदेश के राजपूत और हरयाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रांगड़(मुस्लिम राजपूत) थे. इनमे से अधिकतर लड़ते हुए शहीद हो गए या फिर नेपाल की तराई में बिमारी और भूख से मारे गए. जो कुछ लोग वापिस अपने गाँव पहुचे उन्हें स्वीकार नही किया गया. जिन 85 जवानों ने सर्वप्रथम चर्बीयुक्त कारतूस लेने से मना कर इस स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत की, उन सभी के नाम उपलब्ध हैं.
इन 85 सैनिको में 36 हिन्दू थे जिनमे 34 राजपूत थे बाकी मुसलमान थे जिनमे अधिकतर रांगड़ थे. इन सैनिको के नाम इस प्रकार हैं--
शीतल सिंह
मथुरा सिंह
नारायण सिंह
लाल सिंह
शिवदीन सिंह
बिशन सिंह
बलदेव सिंह
माखन सिंह
दुर्गा सिंह प्रथम
दुर्गा सिंह द्वितीय
जुराखन सिंह प्रथम
जुराखन सिंह द्वितीय
बरजौर सिंह
द्वारका सिंह
कालका सिंह
रघुबीर सिंह
बलदेव सिंह
दर्शन सिंह
मोती सिंह
हीरा सिंह
सेवा सिंह
काशी सिंह
भगवान् सिंह
शिवबक्स सिंह
लक्ष्मण सिंह
रामसहाय सिंह
रामसवरण सिंह
शिव सिंह
शीतल सिंह
मोहन सिंह
इन्दर सिंह
मैकू सिंह
रामचरण सिंह
दरियाव सिंह
मातादीन
लक्षमन दुबे
शेख पीर अली
अमीर कुदरत अली
शैख़ हुस्सुनूदीन
शैख़ नूर मोहम्मद
जहाँगीर खान
मीर मोसिम अली
अली नूर खान
मीर हुसैन बक्स
शैख़ हुसैन बक्स
साहिबदाद खान
शैख़ नंदू
नवाब खान
शैख़ रमजान अली
अली मुहम्मद खान
नसरुल्लाह बेग
मीराहिब खान
नबीबक्स खान
नद्जू खान
अब्दुल्लाह खान
इयासैन खान
जबरदस्त खान
मुर्तजा खान
अजीमुल्लाह खान
कल्ला खान
शैख़ सदूलाह
सलारबक्स खान
शैख़ राहत अली
इमदाद हुसैन
पीर खान
शैख़ फजल इमाम
मुराद शेर खान
शैख़ आराम अली
अशरफ अली खान
खादुर्दाद खान
शैख़ रुस्तम
मीर इमदाद अली
शैख़ इमामबक्स
उस्मान खान
मक़सूद अली खान
शैख़ घसीबक्स
शैख़ उमेद अली
अब्दुल वहाब खान
पनाह अली खान
शैख़ इजाद अली
विलायत अली खान
शैख़ मुहम्मद एवाज़
फ़तेह खान
शैख़ कासिम अली
सन्दर्भ -
1. उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम, ए ए रिजवी
2.A History of British Cavalry 1816-1919: Volume 2: 1851-1871
3. http://www.defencejournal.com/2001/may/forgotten.htm
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