===महान राजपूत व्यक्तित्व स्व. ठाकुर मेघनाथ सिंह शिसौदिया===










मित्रों आज राजपूताने की एक महान हस्ती से आपका परिचय कराएंगे जो आधुनिक युग में राजपूतो के लिये प्रेरणास्त्रोत हैँ। इन हस्ती का नाम है ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशोदिया जिन्हें साठा शिरोमणी भी कहा जाता है। साठा पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गहलोत/शिशोदिया राजपूत बाहुल्य इलाका है जहाँ इनके 60 गाँव हैँ। ठाकुर मेघनाथ सिंह जी को मशहूर शिक्षाविद् ,समाज सुधारक और अपने समय के बहुत ईमानदार एवं जबरदस्त विकास कराने वाले नेता के रूप में याद किया जाता है। ग्रामीण और सामाजिक विकास में रूचि रखने के कारण उन्होंने साठा क्षेत्र के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजपूत बाहुल्य क्षेत्र में अनेक शिक्षण संस्थाओ की स्थापना करी जिसमे स्कूल, कॉलेज, आई टी आई, डिप्लोमा, वोकेशनल कोर्सेज के संस्थान शामिल हैँ। इनके द्वारा उन्होंने हजारो युवाओ को रोजगार दिया। विधायक रहते हुए साठा क्षेत्र का अद्वितीय विकास कराया जिसके लिये इस क्षेत्र के सबसे बड़े व्यक्तित्व के रूप में आज भी वो याद किये जाते हैँ और उन्हें साठा शिरोमणी कहा जाता है।

ठाकुर साब का जन्म 1 अप्रैल 1913 को जिला गाज़ियाबाद में साठा क्षेत्र के रसूलपुर डासना गाँव में ठाकुर नारायण सिंह के यहाँ हुआ। उन्होंने अपनी शिक्षा काफी संघर्ष करते हुए NREC कॉलेज खुर्जा और सेंट जॉन कॉलेज आगरा से करी। छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने दृढ़ संकल्प ले लिया था की ना तो वो अंग्रेज़ो की कोई नौकरी करेंगे और ना ही अंग्रेज़ियत को अपनाएंगे। उन्होंने संकल्प लिया की वकील या डॉक्टर बनने की जगह इंजीनियर या शिक्षक बनूँगा और साथ ही राजपूत गौरव की हर कीमत पर रक्षा करूँगा। उनमें भारत की स्वतंत्रता, गौरव और प्रतिष्ठा के पोषण करने की भावना भी कूट कूट कर भरी हुई थी।

उन्होंने बीएससी करने के बाद इतिहास और हिंदी से परास्नातक किया और इंजीनियर बनने की जगह शिक्षक बनने में सफल हुए। सर्वप्रथम वो 1938 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर के एक स्कूल में शिक्षक तैनात हुए जो उनके लिये हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहा। 1940 में वो प्रिंसिपल बने और 1975 तक अपने ही डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल रहे। इस दौरान उन्होंने साठा क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओ की बाढ़ ला दी। उन्होंने अपने पूरे जीवन में 75 शिक्षण संस्थाए स्थापित की जिसमे डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, हाई स्कूल आदि के अलावा आईटीआई, पेशेवर/डिप्लोमा आदि कोर्स के लिये संस्थान शामिल हैँ। यह संस्थाए आज भी शिक्षा के प्रति स्टाफ के समर्पण और छात्रो के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देने के लिये जानी जाती हैँ।

इन संस्थाओ ने 3 हजार से ऊपर कृषि इंस्पेक्टर पैदा किये, 3 हजार बीटीसी अध्यापक बनाए जिनकी सबकी सरकारी नौकरी लग गई और करीब 4 हजार अध्यापक, कर्मचारी और चपरासी इनके संस्थानों में काम करते हैँ जिनको सरकारी वेतन मिलता है।

ठाकुर साब ने अपने प्रत्येक संस्थान में प्रवेश के लिये जौहर, हल्दीघाटी, महाराणा प्रताप और चित्तोड़ की पढ़ाई अनिवार्य करी हुई थी क्योंकि उनका मानना था की कोई सच्चे मन से तब तक राजपूत नही हो सकता जब तक उसे इनका ज्ञान ना हो।

उनके द्वारा स्थापित किये गए कुछ संस्थान इस प्रकार है--

---डिग्री कॉलेज---
राजपूत शिक्षा शिविर pg कॉलेज(आरएसएस),पिलखुआ, गाज़ियाबाद जिसमे आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स तीनो विभाग हैँ।

----इंटर कॉलेज----
1. राणा शिक्षा शिविर इंटर कॉलेज, धौलाना (गाज़ियाबाद)
2. उदय प्रताप इंटर कॉलेज, सपनावत (गाज़ियाबाद)
3. वत्सराज स्वतंत्र भारत इंटर कॉलेज, कलौंदा(गाज़ियाबाद)
4. राणा संग्राम सिंह इंटर कॉलेज, बिसाहदा
5. रघुनाथ सिंह स्मारक इंटर कॉलेज, आँचरु कला(बुलंदशहर)
6. कल्याणकारी इंटर कॉलेज, चाँडोक(बुलंदशहर)
7. विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, मऊ, चिरायल(हाथरस)
8. गाँधी स्मारक इंटर कॉलेज, बझेड़ा, भरतपुर(अलीगढ़)
9. राष्ट्र सेवा सदन इंटर कॉलेज, भकरौली(बदायूं)
10. चंपा बालिका इंटर कॉलेज, धौलाना(गाज़ियाबाद)
11. महाराणा कुंभा इंटर कॉलेज, खटाना(गाज़ियाबाद)

----हायर सेकेंडरी स्कूल----
1. बप्पा रावल हायर सेकेंडरी स्कूल, शाहपुर फगोता
2. महाराणा कुंभा सर्वहितकारी हायर सेकेंडरी स्कूल, खटाना दादुपुर
3. हायर सेकेंडरी स्कूल, तलवार(बुलंदशहर)
4. सेवा सदन हायर सेकेंडरी स्कूल, सेहंदा फरीदपुर(बुलंदशहर)
5. गंगा खादर हायर सेकेंडरी स्कूल, चाउपुर, दुपटा कलां(बदायूं)
6. गंगा बांगर स्कूल, इंचोरा, खुशहालगढ़(बुलंदशहर)
7. लीलावती बाबू सिंह हायर सेकेंडरी स्कूल, राणा गढ़, पिलखुआ
8. एन आर के हायर सेकेंडरी स्कूल, रसूलपुर डासना
9. मुकंदी देवी हायर सेकेंडरी स्कूल, पवनावली, मुजफ्फरनगर

---स्थापना के बाद दूसरो के प्रबंध में दे दिए---
1. जूनियर हाई स्कूल, खेड़ा, सरधना
2. राजपूत नेशनल स्कूल, पिलखुवा(अब राजपूताना रेजीमेंट कॉलेज)
3. बी आर हाई स्कूल, समाना
4. कंचन सिंह जूनियर हाई स्कूल, सराय नीम, एटा

इनके अलावा अनेको जूनियर हाई स्कूल, प्राइमरी स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थाए उन्होंने स्थापित की जिनका उल्लेख करने की यहाँ जरूरत नही। ना केवल साठा क्षेत्र में बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के और भी राजपूत बाहुल्य क्षेत्रों में उन्होंने संस्थाओ की स्थापना करी।

---राजनैतिक और सामजिक जीवन---
ठाकुर मेघनाथ सिंह जी राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। वो दो बार विधायक रहे जिस दौरान उन्होंने साठा क्षेत्र में विकास की गंगा बहा दी। 1948 से लेकर 1958 तक वो जिला परिषद के सदस्य रहे और शिक्षा, चिकित्सा आदि समिती के अध्यक्ष रहे जिस दौरान उन्होंने क्षेत्र में अनेको प्राइमरी स्कूल, भवन तथा पुल बनवाए। साथ ही जूनियर हाई स्कूल स्तर तक संस्कृत की शिक्षा सर्वप्रथम अनिवार्य करवाई जिसके बाद उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद ने भी उनका अनुसरण किया।

पहली बार 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधायकी का चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी को 71 हजार के भारी अंतर से हराकर जीते जो की आज के समय भी बहुत बड़ा अंतर होता है। इस काल में उन्होंने अनेक स्थानों पर पहली बार बिजली पहुचाई। चौधरी चरण सिंह से कहकर कृषि डिप्लोमा प्राप्त छात्रो को ग्रुप 3 की नौकरी मिलना अनिवार्य करवा दिया जिससे उनके ही संस्थानों के उस वक्त के हजारो डिप्लोमाधारी युवक आज भी ऐश्वर्य की जिंदगी बिता रहे हैँ। इसके अलावा अपने संस्थानों के 2 हजार जे टी सी पास छात्रो की भी नौकरी लगवाई। इसके अलावा मसूरी-धौलाना-सपनावत मार्ग का निर्माण और रसूलपुर में नहर के पुल का निर्माण करवाया।

दूसरी बार 1974 में विधायक बने जो 77 तक रहे। इस काल में उन्होंने क्षेत्र का अद्वितीय विकास करवाया। अनेको प्रमुख सड़को का निर्माण उन्होंने करवाया जिसमे धौलाना-पिलखुवा, धौलाना- बसितपुर, शिकारपुर-खुर्जा, छजारसी-मोदीनगर आदि शामिल है। धौलाना, सपनावत, बिसाहदा और जारचा में सिंडिकैट बैंक की ब्रांच खुलवाई और धौलाना में बड़ा डाकघर और टेलीफोन लाइन बिछवाइ।

इस काल में सबसे अहम काम था क्षेत्र में एन टी पी सी की स्थापना कराना जिसने क्षेत्र की कायापलट कर दी और साठे के 10 गाँवों की आर्थिक स्थिति ऊँची कर दी। इससे क्षेत्र के हजारो युवको को रोजगार मिला। इसके लिये बनी रेल और सड़क के लिये ली गई भूमी का मुआवजा उस जमाने में 1 लाख 20 हजार रुपए दिलवाया।

---सामजिक कार्य---
राणा जी ने सामजिक क्षेत्र में भी पहल की और राजपूत समाज में कई समाज सुधारो की शुरुआत करवाई, जिनमे प्रमुख हैँ--
1. 1962 में यह प्रथा चलवाई की बारात वढाकर से ही विदा होगी, इससे पहले बारात 3 दिन तक रूकती थी।
2. सगाई के समय भेंट लेना बन्द करवाया।
3. दहेज का दिखावा बन्द करने का प्रयास किया।
4. यह भी प्रस्तावित किया की लड़की की शादी में घराती खाना ना खाएं।
5. रसूलपुर गांव की चकबंदी के समय कृषि के अयोग्य बेकार पड़ी बंजर भूमी की भी चकबन्दी करा दी जिससे कृषको को एन टी पी सी का मुआवजा मिल सका।
6. विभिन्न जातियों के सैकड़ो युवको को अपने खर्चे पर शिक्षा दिलवाई और उनकी अच्छी नौकरी लगवाई।
7. अपने संस्थानों के द्वारा क्षेत्र के हजारो लोगो को सरकारी रोजगार दिया और दिलवाया।
8. 1857 में शहीद हुए साठा चौरासी क्षेत्र के क्रान्तिकारियो के इतिहास का संकलन और प्रचार किया और उनकी याद में शहीद स्मारक का निर्माण करवाया।

---व्यक्तित्व---
निजी जीवन में भी राणा जी बहुत अनुशाषित और संयमित जिंदगी जीने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने जीवन में कभी मांस, मदिरा, पान, तंबाकू, गुटखा आदी किसी तरह का सेवन नही किया। देशी वेश भूषा और खान पान के प्रबल समर्थक थे। खान पान में दही और मठ्ठे का प्रयोग ही करते थे। वो आयुर्वेद प्रेमी और एलोपैथी से घृणा करने वाले थे। पैदल ही चलने के अभ्यासी थे, साइकिल तक पर कभी चलकर नही देखा।

निर्भीक वक्ता, अनुशाशनप्रिय, अध्यात्मवादी और चापलूसी से हमेशा घृणा करते थे। छात्रावास में गरीबी का जीवन बिताया था इसलिये गरीबी की इज्जत करते थे।

उर्दू, हिंदी और संस्कृत तीनो के ज्ञाता होने के साथ ही गीता, रामायण, महाभारत, भागवत, कुरान, सत्यार्थ प्रकाश, बाइबिल जैसे ग्रंथो के ज्ञाता या अध्ययनशील थे। गीता के अंतिम श्लोक को मनुष्य, समाज तथा देश के उत्थान के लिये मूलमंत्र मानते थे।

राणा जी राजपूत साहित्य के बहुत अच्छे जानकार थे और कट्टर देश प्रेमी थे। उनकी मान्यता थी कि देशभक्त, बलिदानी और स्वाभिमानी बनने के लिये जीवन में कम से कम एक बार चित्तोड़ और हल्दीघाटी के दर्शन जरूर करने चाहिये। इसके बिना देश धर्म से प्रेम नही हो सकता।

सुबह 4 बजे से शाम 6 बजे तक दफ्तर का काम करते थे। दफ्तर और शिक्षा के सभी कामो में पारंगत थे। अपने अंतिम समय तक भी अपने हर एक संस्थान की जानकारी उन्हें रहती थी।

अंकगणित के एक नवीन नियम की खोज भी उन्होंने की थी।

किसी लड़की की शादी में भोजन नही करते थे, लेकिन आशीर्वाद देने के लिये प्रत्येक शादी में जाते थे।

इनके इकलौते पुत्र श्री वत्सराज सिंह शिशोदिया की 1992 में मृत्यु हो गई, तभी से ये चिंतित और दुःखी रहने लगे। अंत में 6 अक्टूबर 2006 को राणा जी का स्वर्गवास हो गया।

राणा जी के अनुसार दृढ़ निश्चय, अडिग विश्वास, सतत प्रयास और मृदु व्यव्हार ही जीवन संघर्ष के अचूक हथियार हैँ और ये ही उनकी सफलता की कुंजी है।

ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशोदिया जी ने जीवन भर प्रयत्नशील रहते हुए साठा क्षेत्र का सर्वांगीण विकास करवाया। ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैँ जब एक व्यक्ति ने अपने दम पर किसी क्षेत्र का कायापलट कर दिया हो। साठा क्षेत्र जो की एक पिछड़ा क्षेत्र माना जाता था, उसे उन्होंने अपने सतत प्रयासो से विकास की मुख्यधारा में ला खड़ा किया। शिक्षा को उन्होंने विकास का साधन बनाया और अकेले ही साठे में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाकर विकास का पहिया घुमा दिया, ऐसा शायद ही कहीँ और हुआ हो। इसी वजह से उन्हें महामना भी कहा जाता है। क्षेत्र और समाज के विकास के लिये उनका प्रेम और उनकी प्रतिबद्धता हम सबके लिये प्रेरणास्त्रोत हैँ। खासकर आजकल के समाज के नेता उनके जीवन और कार्यो से यह सीख ले सकते हैँ कि समाज और क्षेत्र का नेतृत्व और विकास कैसे किया जाता है।

एक बार फिर से महान देशप्रेमी और समाज प्रेमी, लघु मेवाड़ के पथ प्रदर्शक , महाराणा प्रताप के परम अनुयायी, साठा शिरोमणि, स्वाभिमानी, महान शिक्षाविद् , पूर्व विधायक स्व. ठाकुर मेघनाथ सिंह शिशौदिया जी को शत शत नमन_/\_

जय राजपूताना
जय क्षात्र धर्म

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