बाबा मतीजी मिन्हास,जो सर कटने पर भी गौरक्षा/ब्राह्मण कन्या की रक्षा के लिए विधर्मियों से लड़ते हुए शहीद हो गए,Baba mati ji minhas




RAJPUT LEGEND OF PUNJAB- "BABA MATI JI MINHAS"



बाबा मतीजी मिन्हास



ऐसी मिसाल पुरी दुनिया में मिलनी मुश्किल है,जब असहाय की पुकार सुनकर ओर धर्म युद्ध के लिए अपनी शादी अधूरी छोड़कर अपने जीवन की आहुती भेंट कर दी हो,  ऐसी मिसाल एक राजपूत ही पेश कर सकता है ! धन्‍य हों मतीजी मनहास जिनका सर काटने के बाद भी धड़ दुश्मनों के सर काटता रहा।



There are many sagas in rajput history singing glories of the brave men who kept fighting even after they were beheaded.  One of such sagas is of the Veer Baba Matiji Minhas.



बाबा मतीजी मिन्हास और उनके परिवार का इतिहास ----------



बीरम देव मिन्हास जी ने बाबर की इब्राहिम लोधी (जो की दिल्ली के तखत पर बैठा था ) के खिलाफ युद्ध में सहायता की थी ! इनका एक पुत्र श्री कैलाश देव पंजाब के गुरदासपुर के इलाके में बस गया ! कैलाश देव मिन्हास जी के दो पुत्र कतिजी और मतीजी जसवान ( दोआबा का इलाका जहां जस्वाल राजपूत राज करते थे) में  विस्थापित हो गए ! यहाँ पर दोनों भाई जस्वाल राजा की सरकार में ऊँचे ओधे पर काम करने लगगए ! जसवां के जसवाल राजपूत राजा ने इनकी बहादुरी और कामकाज को देख कर इनाम में जागीर दी , जो की होशिारपुर का हलटा इलाका है ! कहा जाता है की , मतिजी जो शादी का दिन था , और वह अपनी शादी में फेरे ले रहे थे ,तभी एक ब्राह्मण लड़की ने शादी में ही गुहार लगाई की उसका गाव मुस्लमान लुटेरे लूट रहे है , गऊ माता को काट रहे है , लड़कीओ को बेआबरु कर रहे है , गाव को तहस नहस कर रहे है ! मतिजी  ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए , और एक सच्चे राजपूत की भांती आधे फेरे बीच में ही छोड़कर उन मुस्लमान लुटेरों को मार भगाया , लेकिन इस बीच एक दुश्मन के वार से उनका सर धड़ से अलग हो गया , लेकिन वह फिर भी बिना सर के ही उनसे लड़ते रहे , यह नज़ारा देख दुश्मन भागने लगे , मतिजी ने उनका कुछ दूर तक बिना सर के पीछा किया लेकिन वह सब मैदान छोड़ कर दौड़ गए !



बाबा मतीजी दरोली के स्थान पर वीर गति को प्राप्त हुए ! उनकी होने वाली पत्नी ( क्यूंकि शादी पूरी नही हुए थी ) श्रीमती सम्पूर्णि जी (जो की नारू राजपूत थी ) भी  उनके साथ ही अलग चिता में सती होगई ! क्युकी उनकी शादी अधूरी थी इस लिया उन्हें अलग चीता में बिलकुल मतीजी की चीता के साथ सती होने की अनुमति दी गई थी ! आज उन दोनो के स्थान दरोली में साथ साथ है जहां उन्हें अग्नि दी गई थी !



इस प्रकरण के बाद उनके भाई कतीजी ने अपनी जागीर को बदलवाकर  दरोली  ले ली थी , जहां उनके भाई शहीद हुए थे ! यह स्थान मन्हास राजपूतो के जठेरे/पितृ है , क्योंकी गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में इस स्थान और आस पास के राजपूत परिवार सिक्ख बन गये थे , बिलकुल बाबा मतीजी और सम्पूर्णिजी की स्थान के साथ ही एक भवय गुरुद्वारा बाबा मतिजी के नाम से बनवाया गया है !



एक बात बताना चाहता हुँ खालसा साजना के 40 - 50 वर्षो तक सभी तख्तो के जनरल , शस्त्र विद्या सिखाने वाले , ज्यादातर बहादुरी और  मैदान ए जंग में जौहर दिखाने वाले राजपूत योद्धा ही थे ,यह जुझारूपन उन्हें विरासत में मिला था ! गतका , शस्त्र विद्या , घुड़सवारी उनके पूर्वज हज़ारो साल से करते थे  ,और यह सब  उनके खून में ही था !



वैसे तो जठेरे/पितृ पूजन और सती पूजन सिक्ख धर्म में पूर्ण तरह मना है , लेकिन फिर भी हमारे सिक्ख राजपूत भाई आपने रीती रिवाज , और अपने राजपूत होने पर पूरा गर्व करते है और राजपूतो में ही शादी करवाते है !



जय क्षत्रिय धर्म  !!



जय राजपुताना  !!



Post credit---rajput of himalaya

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