पृथ्वीराज रासो अथवा पृथ्वीराज विजय में कौन अधिक प्रमाणिक??




कल रात एबीपी न्यूज़ पर उनके धारावाहिक "भारतवर्ष" में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर प्रसारण हुआ,

इस एपिसोड में साफ़ दिखाई दिया कि पृथ्वीराज चौहान और उनके शासन काल/उत्थान/पतन का प्रमाणिक वर्णन करने में चन्दबरदाई कृत काव्य ग्रन्थ "पृथ्वीराज रासो" पूर्ण सक्षम नही है,

न तो पृथ्वीराज रासो में उल्लिखित घटनाओं के तिथि संवत का ऐतिहासिक साक्ष्यों से मिलान होता है न ही कई घटनाओं की पुष्टि होती है,हाँ पृथ्वीराज के दरबार में ही एक कश्मीरी ब्राह्मण जयानक थे जिन्होंने पृथ्वीराज के जीवनकाल में ही

"पृथ्वीराज विजय" ग्रन्थ लिखा था जिसमे दर्ज घटनाओं और तिथि संवत का शत प्रतिशत प्रमाणन ऐतिहासिक साक्ष्यों से हो जाता है,यह ग्रन्थ अधिक प्रसिद्ध नही हुआ तथा चौहान साम्राज्य के ढहते ही ओझल सा हो गया,ब्रिटिशकाल में एक अधिकारी बुलर महोदय को कश्मीर यात्रा के समय यह ग्रन्थ जीर्ण शीर्ण अवस्था में मिला तो उसमे उल्लिखित घटनाएं और संवत पूर्णतया सही पाए गए,पर दुर्भाग्य से पृथ्वीराज विजय का एक भाग ही प्राप्त हो पाया है,दूसरा भाग अभी तक अप्राप्य है।



तभी से समस्त इतिहासकार एकमत हैं कि पृथ्वीराज चौहान के विषय में समस्त जानकारी पाने के लिए पृथ्वीराज विजय सर्वाधिक प्रमाणिक हैं ,

हालाँकि कुछ घटनाएं पृथ्वीराज रासो में भी सही हो सकती हैं,



यद्यपि पृथ्वीराज रासो वीर रस का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है किन्तु इसकी ऐतिहासिकता संदेहास्पद है,

कुछ असमंजस जो इस धारावाहिक में दिखाई दिए और आम तौर पर रासो को प्रमाणिक मानने में बाधक हैं ????



1--रासो में तैमूर, चंगेज खान, मेवाड़ के रावल रतनसिंह-पदमावती जौहर,ख़िलजी जैसे बाद की सदियों में जन्म लेने वाले चरित्रों और घटनाओ के नाम/प्रसंग आ गए,जबकि उनका जन्म ही पृथ्वीराज चौहान के सैंकड़ो वर्ष बाद हुआ था।



2--रासों में लिखी काव्य की भाषा में फ़ारसी,तुर्की के बहुत से ऐसे शब्द थे जो बहुत बाद में भारतवर्ष में मुस्लिम शासन काल में प्रचलित हुए।



3--रासो के अनुसार जयचंद के द्वारा डाहल के कर्ण कलचुरी को दो बार पराजित और बंदी किए जाने का उल्लेख मिलता है, किंतु वह जयचंद से लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व हुआ था।



4--पृथ्वीराज रासो ही अकेला और प्रथम ग्रन्थ था जिसमे कन्नौज के सम्राट जयचन्द्र को राठौड़ वंशी लिखा है जबकि कन्नौज के चन्द्रदेव,गोविंदचंद्र, विजयचंद्र तथा जयचन्द्र आदि सम्राटो ने अपने किसी भी ताम्रपत्र शिलालेख में खुद को राठौड़ अथवा राष्ट्रकूट नही लिखा,जबकि उनसे कुछ समय पूर्व ही राष्ट्रकूट बेहद शक्तिशाली वंश के रूप में पुरे देश में प्रसिद्ध थे,समूचे दक्षिण भारत पर राष्ट्रकूट राठौड़ वंश का शासन था और कई बार उन्होंने उत्तर भारत में कन्नौज तक हमला किया था,



दरअसल जयचन्द्र और उनके पूर्वज पूर्वी भारत के काशी राज्य के शासक थे और गहरवार/गहड़वाल वंशी थे,

काशी नरेश चन्द्रदेव गहरवार ने कन्नौज/बदायूं के शासक गोपाल राष्ट्रकूट (राठौड़) को हराकर उनसे कन्नौज ले लिया था और गोपाल राष्ट्रकूट को बदायूं का सामन्त बना लिया था,



आज के आधुनिक राठौड़ बदायूं के राष्ट्रकूट राजवंश के ही उत्तराधिकारी हैं जिनके पूर्वज दक्षिण के इंद्र/अमोघवर्ष राष्ट्रकूट के नेतृत्व में कन्नौज पर प्रतिहार राजपूतो के शासनकाल में हमला करने आए थे और यही बस गए थे।।



सम्राट जयचंचन्द्र गहरवार को जयचन्द्र राठौड़ कहकर भ्रान्ति फ़ैलाने की शुरुवात पृथ्वीराज रासो से ही प्रारम्भ हुई।

जबकि जयचन्द्र के पूर्वज गोविंदचंद्र गहरवार का विवाह राष्ट्रकूट शासक की पुत्री मथनदेवी से हुआ था,जिससे स्पष्ट है कि दोनों अलग वंश थे।



5--रासो के अनुसार मेवाड़ के रावल समरसिंह को पृथ्वीराज चौहान का बहनोई बताया गया है और उन्हें तराईन के युद्ध में लड़ता दिखाया गया है

जबकि मेवाड़ के रावल समरसिंह का जन्म ही पृथ्वीराज की मृत्यु के 80 वर्ष बाद हुआ था!!



6--रासो के अनुसार------ पृथ्वीराज चौहान की माता कमला देवी दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री थी,और अनंगपाल तोमर ने अपने दौहित्र पृथ्वीराज को दिल्ली उत्तराधिकार में दी थी,पृथ्वीराज चौहान का बाल्यकाल में राज्याभिषेक दिल्ली की गद्दी पर हुआ था,



जबकि सच्चाई यह है कि पृथ्वीराज चौहान के पूर्वज अजमेर के शासक विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव ने दिल्ली के शासक मदनपाल तोमर पर हमला कर दिल्ली को जीत लिया था और मदनपाल तोमर ने अपनी पुत्री देसल देवी का विवाह बीसलदेव से किया था,जिसके बाद बीसलदेव और अजमेर के चौहानो के अधीन ही दिल्ली में पहले की भाँती तोमर वंश के शासक राज करते रहे,



अनंगपाल तोमर प्रथम का शासन काल सन् 736-754 ईस्वी के बीच था जबकि अनंगपाल तोमर द्वित्य का काल सन् 1051-1081 ईस्वी था,इनके अतिरिक्त कोई अनंगपाल हुए ही नही,

फिर दिल्ली नरेश अनंगपाल पृथ्वीराज चौहान के नाना कैसे हो सकते हैं क्योंकि उनके जन्म लेने के लगभग 80-85 वर्ष पूर्व ही अनंगपाल जी स्वर्गवासी हो गए थे??



सच्चाई यह है कि पृथ्वीराज की माता चेदि के हैहयवंशी कलचुरी राजपूत शासक की पुत्री कर्पूरी देवी थी,

पृथ्वीराज का राज्याभिषेक दिल्ली में नही अजमेर में हुआ था,दिल्ली पर पृथ्वीराज चौहान के समय पृथ्वीराज तोमर और बाद में गोविन्दराज तोमर का शासन था जो अजमेर के मित्र और सामन्त थे।।।



7--रासो के अनुसार दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की एक पुत्री अजमेर के सोमेश्वर (पृथ्वीराज के पिता) से और दूसरी का विवाह कन्नौज नरेश जयचन्द्र से हुआ था,

इस नाते जयचन्द्र पृथ्वीराज के मौसा थे और पृथ्वीराज ने बलपूर्वक अपने मौसा जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता से विवाह किया था!!!!



क्या मौसा की पुत्री से विवाह राजपूतो में सम्भव है???

कदापि नही,



हम ऊपर बता चुके हैं कि पृथ्वीराज चौहान और जयचन्द्र के समय अनंगपाल तोमर थे ही नही उनसे बहुत पहले हुए थे,अत जयचन्द्र पृथ्वीराज के मौसा थे यह कथा कपोलकल्पित है,



यही नही संयोगिता हरण की कथा के भी पर्याप्त साक्ष्य नही मिलते,सर्वाधिक प्रमाणिक ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय में मात्र यह लिखा है कि पृथ्वीराज किसी तिलोत्तमा नामक अप्सरा के स्वप्न देखा करते थे,उसमे कहीं कन्नौज नरेश की पुत्री संयोगिता या उसके हरण का कोई उल्लेख ही नही है।।



8--कन्नौज नरेश सम्राट जयचन्द्र गहरवार पर गद्दार और देशद्रोही होने आक्षेप सबसे पहले पृथ्वीराज रासो में ही हुआ है,रासो के अनुसार जयचन्द्र ने ही गौरी को भारत पर हमला करने को आमन्त्रित किया था,

जो कि पूर्णतया निराधार है,

जयचन्द्र के सम्बन्ध पृथ्वीराज से अच्छे नही थे उसने पृथ्वीराज की मदद नही की यह सत्य है।

लेकिन गौरी को उसने बुलाया इस सम्बन्ध में किसी तत्कालीन मुस्लिम ग्रन्थ में भी कहीं नही लिखा,

न ही कोई अन्य साक्ष्य इस सम्बन्ध में मिलता है,



जयचन्द्र गहरवार को देशद्रोही और गद्दार बताने का निराधार आरोप पृथ्वीराज रासो के रचियेता के दिमाग की उपज है जिसकी कल्पनाओ ने इस महान धर्मपरायण शासक को बदनाम कर दिया और जयचन्द्र नाम देशद्रोह और गद्दारी का पर्यायवाची हो गया!!!



9--रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज की पुत्री बेला का विवाह महोबा के चन्देल शासक परमाल के पुत्र ब्रह्मा से होता है और ब्रह्मा की मृत्यु पृथ्वीराज के समय ही हो जाती है जबकि पृथ्वीराज चौहान अपनी मृत्यु के समय मात्र 26/27 वर्ष के थे तो उस समय उनकी पुत्री बेला का विवाह सम्भव ही नही था।



10--रासो में पृथ्वीराज चौहान द्वारा दक्षिण के यादव राजा भाणराय की कन्या से होना, एक विवाह चन्द्रावती के राजा सलख की पुत्री इच्छनी से होना और उन विवाहो की वजह से उसका गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव से संघर्ष होना लिखा है जबकि देवगिरि में कोई भाणराय नामक राजा हुआ ही नही और चन्द्रावती के किसी सलख नामक राजा के होने का भी कोई उल्लेख नही मिलता,

रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज ने गुजरात के शासक भीमदेव का वध किया जबकि उसकी मृत्यु पृथ्वीराज के 7 वर्ष बाद हुई।



रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज ने उज्जैन नरेश भीमदेव की पुत्री इंद्रावती से विवाह किया,जबकि उज्जैन में भीमदेव नाम का कोई शासक हुआ ही नही।



ऐसी ही दर्जनों कपोलकल्पित कथाए पृथ्वीराज रासो में भरी पड़ी हैं।।



12--रासो में गौरी के पिता का नाम सिकन्दर लिख दिया जो उससे 1300 वर्ष पहले हुआ था,इसके अलावा मौहम्मद गौरी के सभी सेनानायकों के नाम गलत लिखे गए हैं।



13--रासो में लिखा है कि पृथ्वीराज के बहनोई मेवाड़ के रावल समरसिंह ने मांडू से मुस्लिम बादशाही को उखाड़ दिया जबकि मांडू(चन्देरी) में मुस्लिम सत्ता ही सन् 1403 में दिलावर गौरी द्वारा स्थापित हुई थी,जिसे राणा सांगा ने 1518 ईस्वी में उखाड फेका था ,

इससे लगता है कि रासो ग्रन्थ कहीं 16 वी सदी में तो किसी ने नही लिखा???



14--और अंत में,पृथ्वीराज रासो में उल्लिखित घटनाओं के तिथि संवत ऐतिहासिक साक्ष्यो से कतई मेल नही खाते,पृथ्वीराज रासो के अनुसार यह घटनाएं 11 वी सदी में हुई जबकि मौहम्मद गौरी और समकालीन मुस्लिम शासको का 12 वी सदी के अंतिम दशक में होना प्रमाणित है और पृथ्वीराज विजय में उल्लिखित घटनाओ का तिथि क्रम एकदम मेल खाता है।।

रासो में पृथ्वीराज की मृत्यु 1101 ईस्वी में लिखी है जबकि उनकी मृत्यु 1192 ईस्वी में हुई,

यदि चन्दबरदाई पृथ्वीराज के समकालीन होते तो इतनी बड़ी भूल कैसे करते??



इस प्रकार स्पष्ट है कि जिस प्रकार महाऋषि वेदव्यास कृत जय नामक ग्रन्थ जो मूल रूप से 8800 श्लोक में लिखा गया था,वो आज कपोलकल्पित कथाए जोड़कर 1 लाख से अधिक श्लोक का हो गया है जिसमे क्या सही क्या मनगढंत पता नही लगता।



इसी प्रकार या तो पृथ्वीराज रासो को किसी ने 1400 ईस्वी या उसके भी बाद लिखकर मशहूर कर दिया जिसमे बाद में होने वाली घटनाएं भी जोड़ दी या यह ग्रन्थ मूल रूप में सही हो पर बाद में इसमें नई नई फर्जी कपोलकल्पित घटनाए जोड़कर इसकी ऐतिहासिकता और प्रमाणिकता को नष्ट कर दिया।।



रासो की वजह से ही राजपूत समाज में कई गलत मान्यताओ का प्रचार हो गया और यह मान्यताए समाज में भीतर तक स्थान बना चुकी हैं,जिन्हें झुठलाना लगभग असम्भव हो गया है।



पृथ्वीराज चौहान गत 1000 वर्षो में हुए महानतम यौद्धाओं में एक हैं जो दुर्भाग्यपूर्वक मात्र 26 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी हो गए अन्यथा वो पुरे भारत के एकछत्र सम्राट होते,

उनके विषय में सम्पूर्ण प्रमाणिक जानकारी कश्मीरी कवि जयानक कृत पृथ्वीराज विजय नामक ग्रन्थ से ली जा सकती हा,किन्तु दुर्भाग्य से उसका एक भाग अभी तक अप्राप्य है।



लेखक---धीरसिंह पुण्डीर जी से साभार

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