गुर्जरदेश, गुर्जरात्रा और चौकीदार गुर्जर जाति की उत्पत्ति (Gurjar desh and Chaukidar Goojar/Gujjar caste)








उत्तर मध्य काल में पश्चिम भारत मे एक प्रदेश होता था जिसका नाम था गुर्जरात्रा या गुर्जरदेश। इस प्रदेश की सीमा में आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान के जालोर, सिरोही, बाड़मेर जिले और आज के उत्तर गुजरात के बनासकांठा, पाटन और मेहसाणा आदि जिले आते थे। इस क्षेत्र का नाम यहां की अर्थव्यवस्था और समाज के गौपालन पर टिके होने की वजह से पड़ा। गूजर गौचर का ही अपभ्रंश है।



इस क्षेत्र में आज भी भारत के सबसे सघन घास के मैदान और गौचर भूमि मिलती है। इस कारण और सूखे क्षेत्र होने की वजह से कृषि बेहद सीमित होने के कारण यहां की जनसंख्या पूरी तरह गौपालन से जुड़ी हुई थी। यहां तक कि कुछ दशक पहले तक भी देश का यह संभवतया अकेला क्षेत्र था जहाँ गौपालन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था। देश की सबसे बड़ी पथमेड़ा गौशाला इसी क्षेत्र के बीचों बीच स्थित है। देश के सबसे बड़े घास के मैदान 'बनी' ग्रासलैंड इसी क्षेत्र में मिलते हैं। आज भी रबाड़ी, मालधारी, भरवाड़ आदि अनेक पशुपालक जातियो की इस क्षेत्र में बड़ी आबादी है। इसी लिए इस प्रदेश का नाम गौचर बहुल होने से गूजर या गुर्जरदेश पड़ा और यहां के निवासियों को गूजर/गुर्जर कहा गया। कई बार जैसलमेर-जोधपुर मरुस्थल को मिलाने के बाद इस प्रदेश को गुर्जर-मारू भी कहा जाता था। आज का गुजरात राज्य 1947 के बाद बना है जब भाषा के आधार पर सौराष्ट्र, कच्छ, पंचमहाल आदि क्षेत्र इस प्रदेश में मिलाए गए।



इस गुर्जरदेश पर कई राजपूत वंशो ने राज किया जिस कारण उन्हें गुर्जरपति कहा गया। इस आधार पर कई इतिहासकारों ने गलती से इन राजपूत वंशो को उत्तर पश्चिम भारत की पशुपालक/चोर/चौकीदार गूजर जाती से जोड़ दिया। जबकि अब ये सिद्ध हो चुका है कि प्रतिहारो और अन्य वंश के राजाओ को गुर्जरपति गुर्जरदेश पर शासन करने के कारण कहा गया।



चौकीदार गूजर और अन्य गूजर जातियां---



कालांतर में इस प्रदेश से बड़े पैमाने पर कई जातियों का दूसरे प्रदेशों में पलायन हुआ जो उन प्रदेश में गुर्जरदेश से आने के कारण गुर्जर के नाम से जानी गई। इनमे एक तरफ सौराष्ट्र और कच्छ में मिलने वाली गुर्जर ब्राह्मण, गुर्जर मिस्त्री, गुर्जर लोहार, गुर्जर बढ़ई आदि जातियां हैं जिनके इन क्षेत्रों में गुर्जरदेश से आकर बसने के कारण इनके जातिगत नाम के साथ स्थानसूचक शब्द का इस्तेमाल किया गया। इनके अलावा महाराष्ट्र के खानदेश में गूजर नाम की दो जातियां मिलती हैं- डोरे गुर्जर और रेवा गुर्जर। गुजरात से कई राजपूत वंश के लोग खानदेश में आकर बसे जो किन्ही कारणों से स्थानीय राजपूतो में नही मिल पाए। इनमे सबसे बड़ी आबादी डोर वंश के राजपूतो की थी जिनके आधार पर ये लोग डोरे गुर्जर नाम से जाने गए। इनके अलावा गुजरात के लेवा पाटीदार जाती के लोग खानदेश आकर रेवा गुर्जर के नाम से जाने गए। मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ में भी मुरलिया गूजर, हेरे गूजर और लिलोरिया गूजर नाम की गूजर जातिया मिलती हैं जिनका आपस मे कोई वैवाहिक संबंध नही और समानता सिर्फ इतनी है कि इन सभी को गुर्जरदेश से आने के कारण गूजर कहा जाता है।



इन जातियो के अलावा गूजर नाम की जातियो में सबसे बड़ी जाती है चौकीदार गूजर। गुर्जरदेश के शासक प्रतिहार राजपूतो की एक शाखा का ढूंढाड़ के राजौर में शासन स्थापित होने के बाद उनके साथ गुर्जरदेश से ढूंढाड़ में बड़ी संख्या में गौचर जातियो का पलायन हुआ जहां इन्हें गुर्जर कहा गया। इन गुर्जरों पर राज करने के कारण राजौर के प्रतिहार राजपूतो को बड़गुर्जर कहा गया। ढूंढाड़ में इन गौचर जातियो का आजीविका का साधन पशुपालन के साथ चौकीदारी और चोरी चकारी था। राजपूतो द्वारा बसाए जाने के कारण ये लोग राजपूतो के करीब थे और राजपूत सेनाओं को दूध-दही की आपूर्ति किया करते थे। कालांतर में इस चौकीदार गौचर जाती का फैलाव यमुना और गंगा की घाटियों से शिवालिक होते हुए पंजाब और कश्मीर तक हो गया। कश्मीर के गूजरो द्वारा बोली जाने वाली गूजरी बोली में गुजराती और राजस्थानी भाषा का गहरा प्रभाव होना इस बात की और इंगित करता है। इसी तरह इनके राजपूतो के 'करीब' रहने के कारण कई राजपूत वंश कई कारणों😉 से गिर कर इनमे शामिल होते गए।



गूजरो के हूणों का वंशज होने का दावा---



गूजर बड़े गर्व से अपने को हूण से लेकर कुषाण, जॉर्जियन लगभग हर विदेशी आक्रमणकारी की औलाद बताते हैं। इनमे सबसे करीबी दावा हूणों से संबंध का है। हूण आक्रमणकारियों ने भारत मे सिर्फ कश्मीर और गांधार क्षेत्र में कुछ समय के लिये राज किया था। हूणों ने मध्य भारत पर आक्रमण जरूर किये थे लेकिन उन्हें हर बार सोमवंशी गुप्त शासकों ने खदेड़ दिया था और राजतरंगिणी जैसे कई ऐतिहासिक ग्रंथो के अनुसार कई बार यहां से खदेड़े जाने के बाद ये लोग अंत में काबुलिस्तान और जाबुलिस्तान में जाकर बस गए थे जिसे आज पख्तूनिस्तान कहा जाता है।



आज कल के चौकीदार गूजरो के प्रोपगंडा पर यकीन कर के अगर इन्हें हूणों का वंशज मान भी ले तो ये सिर्फ हूण आक्रमणकारियों द्वारा स्थानीय महिलाओं के साथ सम्बन्धो से उत्पन्न जाति ही मानी जा सकती है क्योंकि ना तो हूण यहां अपनी महिलाओं के साथ आए थे और ना ही वो इस क्षेत्र में कही बसे। इन चौकीदार गूजरो में मिलने वाले हूण गोत्र के गूजर इन हूण आक्रमणकारीयो द्वारा किये गए सम्बन्धो से उतपन्न संतान हो सकती है जिन्हें अलग गोत्र मानकर चौकीदार गूजर जाती में शामिल कर लिया गया हो। हूणों का कश्मीर और उत्तर पश्चिम पंजाब पर जरूर कूछ समय के लिये शासन रहा जिससे कश्मीर के पहाड़ी गूजरो में हूणों के वंशजों के शामिल होने की संभावना है जिसकी पुष्टि डीएनए टेस्ट से भी हो चुकी है जिसमे मैदानी और पहाड़ी गूजरो में बहुत फर्क बताया गया है।

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