प्राचीन गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश) और आधुनिक गुजरात राज्य मे क्या अंतर है?






प्राचीन गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश) और आधुनिक गुजरात मे क्या अंतर है?---



प्राचीन गुर्जरात्रा या असली गुजरात आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान में था,



इसमें आज के राजस्थान के पाली,जालौर,सिरोही,

भीनमाल(बाड़मेर का कुछ हिस्सा), कुछ हिस्सा जोधपुर व् कुछ हिस्सा मेवाड़ का सम्मिलित था,

(इसका नामकरण 5 वी सदी के आसपास गुर्जरात्रा क्यों हुआ इसके विषय में अलग से पोस्ट करूँगा)



भीनमाल प्राचीन गुर्जरात्रा की राजधानी थी, जिस पर हर्षवर्धन के समय चावड़ा राजपूत व्याघ्रमुख शासन करते थे।चावड़ा वंश को उनके लेखों में चापोतक्ट लिखा मिलता है।



चावड़ा वंश परमार राजपूतो की शाखा माना जाता है तथा अभी भी राजस्थान गुजरात उत्तर प्रदेश में चावड़ा वंश की आबादी है, गुजरात मे तो चावड़ा राजपूतो की आज भी स्टेट हैं।

कालांतर में चावड़ा वंश का शासन भीनमाल से समाप्त हो गया और उन्होंने प्राचीन आनर्त देश(आज के गुजरात का उत्तरी भाग) में पाटन अन्हिलवाड़ को राजधानी बनाया तथा अपने प्राचीन राज्य गुर्जरात्रा की स्मृति में नए स्थापित राज्य का नाम भी गुर्जरात्रा रख दिया।



प्राचीन गुर्जरात्रा पर इसके कुछ समय बाद ही नागभट्ट प्रतिहार ने कब्जा कर लिया तथा इस गर्जरात्रा के शासक होने के कारण गुरजेश्वर कहलाए।



इस प्रकार प्राचीन आनर्त देश ही गुर्जरात्रा या गुजरात राज्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ, पर प्रारम्भ में इसमें पाटन, साबरकांठा, मेहसाणा, बनासकांठा आदि ही शामिल थे।



10 वी सदी में चावड़ा वंश के स्थान पर गुजरात में सोलंकी वंश की सत्ता स्थापित हुई,

सोलंकी वंश ने जब लाट देश (आज के गुजरात का दक्षिणी हिस्सा) पर कब्जा किया तो लाट देश भी उसी गुजरात का हिस्सा बन गया।

ये सोलंकी राजपूत राजा भी इस नए गुजरात पर शासन करने के कारण ही गुरजेश्वर कहलाए।

किन्तु सौराष्ट्र कच्छ का इलाका इस गुजरात से अलग ही रहा।



कालांतर में गुजराती भाषा का प्रचार प्रसार सौराष्ट्र में भी हो गया और 1947 के बाद समान भाषा के नाम पर जिस गुजरात नामक प्रदेश का निर्माण हुआ उसमे सौराष्ट्र और कच्छ का इलाका भी जोड़ दिया गया।



इस प्रकार ही आधुनिक गुजरात राज्य अस्तित्वव् में आया जबकि असली या प्राचीन गुजरात राज्य आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान के हिस्से को कहा जाता था।



जब आनर्त और लाट का संयुक्त हिस्सा नवीन गुजरात के रूप में प्रसिद्ध हो गया तो प्राचीन गुर्जरात्रा प्रदेश का नाम भी समय के साथ बदलकर गौड़वाड़ हो गया, जो राजस्थान के पाली जालौर सिरोही के संयुक्त क्षेत्र को कहा जाता है।



एक कमाल की बात ये है कि आधुनिक पशुपालक गुज्जर जाति की जनसंख्या न तो प्राचीन गुर्जरात्रा/गुजरात में है न ही आधुनिक गुजरात राज्य में इन गुज्जरों की कोई आबादी है।



न तो प्राचीन गुजरात में गुज्जर हैं

न आधुनिक गुजरात में गुज्जर हैं!!!



न प्रतिहारों की प्राचीनतम राजधानी भीनमाल और मंडोर में गुज्जर हैं

न ही प्रतिहारों के सबसे विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज में गूजरों की कोई आबादी है!!



न ही आज गूजरों में कोई प्रतिहार परिहार वंश मिलता है,

गुजरात और कन्नौज में तो कोई जानता ही नही कि गुज्जर जाति होती क्या है!!!



फिर किस आधार पर ये प्रतिहार वंश और गुजरात पर दावा ठोकते हैं??



नोट--इसी प्रकार 18 वी सदी में गुजरात मे बड़ौदा पर शासन स्थापित करने वाले गायकवाड़ मराठा भी गुरजेश्वर कहलाए जाते हैं।

गुरजेश्वर गुर्जराधिपति आदि उपाधियों का अर्थ है गुजरात प्रदेश के शासक न कि गुज्जर जाति के शासक, ये बात आज के गुज्जर भाइयो को समझ लेनी चाहिए।



अगले भाग में गर्जरात्रा नामकरण और यूपी राजस्थान मध्य प्रदेश कश्मीर व पाकिस्तानी पंजाब दिल्ली एनसीआर के गुज्जर समाज की उतपत्ति ओर वास्तविक इतिहास पर चर्चा करेंगे।





जय श्रीराम, 

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