पुण्डीर क्षत्रिय वंश की कुलदेवी दधिमती माता का मन्दिर










पुण्डीर क्षत्रियों की कुलदेवी "दधिमती माता" का मंदिर-----



नागौर जिले में जायल तहसील में गोठ मॉगलोद गांव में दधिमाती माता का मंदिर स्थित है।

दधिमती माता को लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है,और ये पुराणों में वर्णित 51 शक्तिपीठों में एक मानी जाती हैं।









पुरातत्व विभाग इस मंदिर को दो हजार पूर्व से निर्मित मानता है।

आपने आज तक जितने भी खम्बे या पिलर देखे उनमे आपने यही देखा होगा कि खम्बे आधार हेतु बनते है लेकिन यहाँ आप अधर खम्भ को हवा में झूलते देख सकते है मान्यता है कि जिस दिन यह खम्भ पृथ्वी से छू जाएगा उस दिन प्रलय होगी और चहु ओर विनाश ही विनाश होगा।









माना जाता है की मुख्य नवरात्रि की सप्तमी को जो कोई महाआरती के बाद यहां नहाता है उसको गंगा,यमुना,नर्मदा सहित सभी पुण्यशाली नदियों में नहाने का फल मिलता है ।यह कुंड कभी सूखता नही है और ना ही कभी इसका जल ऊपर की सीढ़ी पार करता है इसकी गहराई को कोई नही नाप सकता क्योंकि इस गहराई अथाह है ।



दधिमती माता मंदिर व क्षेत्र का इतिहास--------



राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार ‘‘इस मंदिर के आस-पास का प्रदेश प्राचीनकाल में दधिमती (दाहिमा) क्षेत्र कहलाता था।

उस क्षेत्र से निकले हुए विभिन्न जातियों के लोग, यथा ब्राह्मण, राजपूत, जाट आदि दाहिमे ब्राह्मण, दाहिमे राजपूत, दाहिमे जाट, दाहिमा गुज्जर आदि कहलाये।।



रघुवंशी श्रीराम के वंशज महाराजा पुण्डरीक के नाम से क्षत्रियों में पुण्डीर शाखा चली।

इसलिए अनुमान लगाया जाता है कि जो पुण्डीर क्षत्रिय प्राचीन काल मे दधिमती क्षेत्र में निवास करते थे वो कालांतर में दाहिमा क्षत्रिय कहलाए।

पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज के सबसे शक्तिशाली सामन्तो कैमास दाहिमा और धीर पुण्डीर दोनो का भाई होना लिखा है, जो इस तथ्य की पुष्टि करता है।

दोनो ही वँशो के कुल गोत्र प्रवर एक से हैं तथा दोनो ही कुल दधिमती माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं।



पुण्डीर क्षत्रियों के अतिरिक्त दधीश ब्राह्मणों की कुलदेवी भी दधिमती माता हैं।



नागौर क्षेत्र पहले अजमेर नरेश सोमेश्वर चौहान ने कैमास दाहिमा को जागीर में दिया था, बाद में अल्पसमय के लिए इसे मायापुरी (हरिद्वार) के शासक और पंजाब सीमा के सूबेदार चन्द्र पुण्डीर के भाई धनुराव पुण्डीर को दिया गया।

हालांकि अब इस क्षेत्र में दाहिमा और पुण्डीर क्षत्रियों का अस्तित्व नही हैं, किन्तु पृथ्वीराज चौहान के समय तक बयाना औऱ नागौर क्षेत्र में दाहिमा और पुण्डीर राजपूत प्रभावशाली थे।



हाल ही में सहारनपुर स्थित पुण्डीर राजपूतों के बड़े गांव शिमलाना और भायला में भी कुलदेवी दधिमती माता के सुंदर मंदिर स्थापित किये गये है।









जय दधिमती माता, जय क्षात्र धर्म


सन्दर्भ ग्रन्थ---पृथ्वीराज रासो, पण्डित गौरीशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास , श्री ईश्वर सिंह मुंढाड़ कृत राजपूत वंशावली, कर्नल जेम्स टॉड कृत Anal and antiquities of westerns rajput states,




लेखक--श्री वाई० इस० पुण्डीर जी से साभार







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